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मोक्ष अक्षय है। मोक्ष प्राप्त करने की आदि तो है, मगर अन्त नहीं है, अतएव मोक्ष को अक्षय कहा है।
मोक्ष अव्याबाध है-पीड़ा रहित है। मुक्तात्माओं को किसी प्रकार का कष्ट या शोक नहीं है, और न वह किसी दूसरे को पीड़ा पहुंचाते हैं।
मोक्ष पुनरागमन रहित है। जो एक बार मुक्त हो जाता है वह फिर लौट कर कभी संसार में नहीं आता।
सिद्ध एक गति है। जिसके सब काम सिद्ध हो जावें वह सिद्ध कहलाता है। आत्मा कृतकृत्य हो जाने पर जहां जाती है वह सिद्धिगति या सिद्धगति है। इस गति में आत्मा सदा काल विद्यमान रहती है। सिद्धिगति नामक स्थान इन सब पूर्वोक्त विशेषणों से रहित है।
शंका-जीव को 'शिव' कहना तो उचित कहा जा सकता है, पर स्थान को शिव क्यों कहा गया है?
समाधान-सिद्धात्मा आधेय और सिद्धिगति स्थान आधार है। दोनों में आधार आधेय का संबंध है। इस संबंध के कारण स्थान शिव कहा गया है। जहां शिव जीव ठहरता है, वह स्थान भी शिव रूप ही कहलाता है। इस प्रकार आधार पर आधेय में अभेद की कल्पना करके यहां स्थान को शिव कहा गया
उदारहण के लिए लॉर्ड की कोठी और शाहजहां का किला लीजिये। लार्ड की कोठी लॉर्ड से नहीं बनी है, शाहजहां का किला शाहजहां से नहीं बना है-अर्थात् उनकी हड्डियों से उनका निर्माण नहीं हुआ है-किन्तु ईंट, पत्थर चूना आदि से बना है तथापि जिस कोठी में लॉर्ड रहता है वह लॉर्ड की कोठी और जिस किले में शाहजहां रहता था वह शाहजहां का किला कहलाता है। तात्पर्य यह है कि यहां भी आधार-आधेय के अभेद की विवक्षा से ऐसा लोक व्यवहार होता है। मोक्ष क्षेत्र में शिव जीव जाते और रहते हैं, इसलिए वह क्षेत्र भी शिव कहलाता है।
अथवा जहां स्थिति की जाये वह स्थान कहलाता है। निश्चय नय से विचार किया जाये तो प्रत्येक वस्तु अपने ही स्वरूप में स्थित रहती है और विशेष रूप से सिद्ध आत्मा तो अपने ही स्वरूप में स्थित है। अतएव स्थान का तात्पर्य यहां जगह क्षेत्र न समझकर आत्मा का स्वरूप ही समझना चाहिए। जब स्थान का अर्थ आत्मा का स्वभाव है तो यह प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता कि क्षेत्र को शिव क्यों कहा गया है?
श्री भगवती सूत्र व्याख्यान १२७