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अगर कंकर के बदले हीरा मिलता हो तो ले लेंगे या नहीं? अवश्य। क्रोध के बदले क्रोध करना, हीरे के बदले में कंकर खरीदना है और क्रोध के बदले क्षमा धारण करना कंकर के बदले हीरा लेना है। आप जो पसंद करें वही ले सकते हैं।
अक्सर लोग गाली का बदला गाली से चुकाते हैं, लेकिन भगवान् महावीर का सिद्धान्त यही नहीं है। गाली के बदले गाली देने का नाम ज्ञान नहीं है। यदि कोई गाली देता है तो उससे भी कुछ न कुछ शिक्षा लेना ज्ञान है। मान लीजिए, किसी ने कहा-'तुम नीच हो । जो ज्ञानी होगा वह यह गाली सुनकर विचार करेगा कि नीचता बुरी वस्तु है। यदि मुझ में नीचता है तो गाली देने वाला सत्य ही कह रहा है और मुझे शिक्षा दे रहा है। इस शिक्षा के लिए मुझे क्षुब्ध क्यों होना चाहिए? मैं अपनी नीचता पर ही क्षुब्ध क्यों न होऊ ? फिर शिक्षा देने वाले पर क्रोध करना क्या नीचता नहीं है ? मुझे अपनी नीचता का ही त्याग करना चाहिए।
अगर कोई आदमी कहता है-आपके सिर पर काली टोपी है, तो काली टोपी वाला पुरुष, अपने सिर से वह टोपी न हटाकर उस पर नाराज हो, यह कौन-सा न्याय है? पर संसार में सर्वत्र यही झगड़ा चल रहा है। लोग अपने सिर की काली टोपी उतारते नहीं अपने दुर्गण देखते नहीं और दूसरे पर नाराज होते हैं।
भगवान महावीर उत्कृष्ट ज्ञानी थे। वे भूत, भविष्य और वर्तमान काल के समस्त भावों के ज्ञाता थे। अपने अपमान को भी जानते थे। मगर उन्होंने क्रोध नहीं किया। घोर से घोर उपसर्ग देने वाले पर भी भगवान् ने अपूर्व क्षमा की वर्षा की-स्वयं शान्त रहे और उपसर्ग दाता को भी शान्ति पहुंचाई। इसी से भगवान् जिन और 'जाणए' कहलाए।
चौसठ इन्द्र, जिन भगवान् महावीर के चरणों में नमस्कार करके अपने को कृतार्थ मानते हैं, उन भगवान् पर सामान्य अनार्य लोग धूल फैंकें, उन्हें चोर कहकर बांधे, भेदिया कहकर उनकी अवहेलना करें, सूने मकान में ध्यान करते समय दृष्ट लोग उन्हें वहां से बाहर भगा दें, क्या यह अपमान की बात नहीं समझी जाती? मगर इतना अपमान होने पर भी भगवान् ने इसे अपमान नहीं समझा। इस अपमान को भी भगवान् ने अपना सम्मान ही समझा और यह माना कि इसकी बदौलत मुझे शीघ्र ही महाकल्याण की प्राप्ति होगी।
भगवान् का यह आदर्श और पवित्र चरित्र ही हमारा आदर्श होना चाहिए। अगर हम उस आदर्श पर आज ही न पहुंच सकें तो कोई हानि नहीं, १२२ श्री जवाहर किरणावली