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संसारी आत्मा धनिक के समान है। आत्मा के पास अनन्त ज्ञान, दर्शन आदि रूप धन है। काम क्रोध आदि दुर्गुण ठग हैं। इन ठगों ने संसार की वस्तुओं का आत्मा रूपी धनिक को ऐसा मनोहर एवं आकर्षक रूप दिखाया कि आत्मा उन ठगों के जाल में फंस गयी और उन वस्तुओं को ही अपने लिए परम हितकारी मानने लगी। इस प्रकार काम, क्रोध आदि ठगों ने आत्मा को उसके.असली घर से बाहर निकाला, संसार रूपी वन में ले जाकर डाल दिया और ज्ञान-नेत्रों पर अज्ञान का पट्टा चढ़ा दिया।
जिसके द्वारा ज्ञान का हरण हो वही सच्चा दुर्गुण है। धन-माल लूट लेने वाला वैरी वैसा नहीं है, जैसा वैरी सच्ची बुद्धि बिगाड़ने वाला होता है।
__ अनेक विद्वानों का यह मत है कि औरंगजेब शाही एवं नादिरशाही से भारत की वैसी हानि नहीं हुई थी। क्योंकि उन्होंने सिर्फ शस्त्राघात ही किया था। वास्तविक और महान् हानि तो उस शाही से हुई है, जिसने बुरी-बुरी बातों में फंसा कर बुद्धि को ही नष्ट कर दिया, साहित्य को गंदा कर दिया, जिससे सत्य का पता लगाना ही कठिन हो गया है। धूर्त लोग बुद्धि-चक्षु को हरण करके, बुरे कामों में इस तरह फंसा देते हैं कि जिससे छूटना ही कठिन हो जाता है।
वे लोग भूल करते हैं जो धूर्तों द्वारा दी हुई चीज के लिए यह समझते हैं कि उन्होने कृपा करके यह दी है। धूर्त लोग जो भी चीज देंगे, वह बुद्धिहरण करने के लिए ही देंगे। भलाई की भावना से किया गया काम और ही तरह का होता है। लेकिन धूर्तों ने लोगों की अच्छी वस्तु हरण करके बुरी चीजें उनके गले मढ़ दी हैं।
इस प्रकार आत्मा रूपी सेठ संसार रूपी वन में, बंधन–बद्ध होकर कष्ट पा रहा है। ऐसे समय में अरिहन्त भगवान् के सिवाय और कौन करुणासिन्धु होकर सहायक बन सकता है ? कौन प्रकाश प्रदान कर सकता है?
हरि, हर ब्रह्म, अनन्त कुछ भी कहो-जिसने कर्मों का समूल क्षय प्राप्त कर लिया है, जिसने अनन्त प्रकाश पुंज प्राप्त कर लिया है और संसार को अभय देता है, वही हमारा पूज्य है। परन्तु जिस हरि, हर आदि को नीच कामनाओं के साथ गूंथ कर लोग अपना स्वार्थ साधन करते हैं, हम उन के भक्त कैसे हो सकते हैं? कामनाओं के कीचड़ से निकलना ही जिनका एक मात्र उद्देश्य है, जो अपने जीवन को शुद्ध एवं स्वच्छ बनाना चाहते हैं, वे सकाम देवों की उपासना नहीं करेंगे। अरिहन्तों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बुरे १०८ श्री जवाहर किरणावली