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________________ संसार में समान्यतया देवता और इन्द्र पूज्य माने जाते हैं। लोग उनकी पूजा करते हैं। मगर इन्द्र आदि देवता भी भगवान् को ही पूजनीय मानते हैं। भगवान् उनके भी नाथ हैं। भगवान् देवाधिदेव हैं। इस विशेषता को सूचित करने के लिए भगवान् को 'लोकनाथ। विशेषण लगाया गया है। लोकप्रदीपलोक के नाथ होने के साथ भगवान् लोक-प्रदीप भी हैं-लोक के लिए दीपक के समान हैं। भगवान् लोक को यथावस्थित वस्तु स्वरूप दिखलाते हैं, इसलिए लोकप्रदीप हैं। अन्धकार से आच्छादित वस्तुओं को दीपक प्रकाशित कर देता है, इसी प्रकार अज्ञान रूपी अन्धकार के कारण आच्छादित वस्तु के वास्तविक स्वरूप को भगवान् प्रकाशित करते हैं। घर का दीपक घर में प्रकाश करता है, कुल का दीपक कुल में प्रकाश करता है, नगर का दीपक नगर में प्रकाश करता है और देश का दीपक देश में प्रकाश करता है। जो जहां प्रकाश करता है वह वहीं का दीपक कहलाता है। भगवान् सम्पूर्ण लोक में प्रकाश करते हैं, इसलिए वह लोक के दीप कहलाते हैं। इसी कारण उन्हें 'जगदीश्वर' कहते हैं। अथवा भगवान् मनुष्य, तिर्यंच देव आदि के हृदय में मिथ्यात्व के अन्धकार को मिटाकर सम्यक्त्व का ऐसा अपूर्व एवं अलौकिक प्रकाश देते हैं कि वैसा प्रकाश संसार का कोई भी प्रकाशवान् पदार्थ नहीं दे सकता। भगवान् की स्तुति करते हुए कहा गया है रवि शशि न हरे सो तम हराय अर्थात्-जो अन्धकार सूर्य और चन्द्रमा भी नहीं मिटा सकते, वह अन्धकार भगवान मिटा देते हैं। द्रव्य-अन्धकार की अपेक्षा भाव-अन्धकार अत्यन्त सूक्ष्म और गहन होता है। द्रव्य अन्धकार इतना हानिकारक नहीं होता, जितना भाव-अन्धकार होता है। भाव–अन्धकार होने पर मनुष्य की आंखें द्रव्य प्रकाश की विद्यमानता में भी वस्तु तत्व को देखने में असमर्थ हो जाती हैं। भाव अन्धकार मनुष्य की समस्त इन्द्रियों को, यहां तक मन और चेतना को भी बेकार बना डालता है। भगवान् भाव–अन्धकार को हरने वाले दिव्य दीपक हैं-अतएव 'लोक प्रदीप' हैं। यह विशेषण दृष्टा लोक की अपेक्षा कहा गया है, क्योंकि भगवान् दृष्टा अर्थात् देखने वाले के लिए दीपक का काम कर देते हैं, लेकिन हैं वह सारे संसार को प्रकाशित करने वाले। १०२ श्री जवाहर किरणावली 2999999993 33333
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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