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क्रोध न आवे और जब अर्जुन मुझ पर मुग्दर का प्रहार करे तब भी आपका ध्यान अखण्ड बना रहे। अर्जुन मुझे मित्र प्रतीत हो, शत्रुता का भाव हृदय में उत्पन्न न हो।
___ जो लोग सुदर्शन की भांति परमात्मा से निर्वेर एवं निर्विकार बुद्धि की ही याचना करते हैं, उन्हीं का मनोरथ पूर्ण होता है। इस बात पर दृढ़ प्रतीति होते ही विरुद्ध वातावरण अनुकूल हो जाता है।
औरों के उपदेश में भाषा लालित्य और शाब्दिक सौन्दर्य भले ही अधिक मिले, लेकिन भगवान् महावीर के उपदेश में जो विचित्रता है, वह अन्यत्र कहीं नहीं मिल सकती। लोग आज उनकी शक्ति पर विचार नहीं करते, इसी से दुःख पा रहे हैं। सुदर्शन ने भगवान् की शक्ति पहचानी थी।
निर्विकार और निर्वैर रहने की भावना पर नास्तिक को चाहे विश्वास न हो, नास्तिक भले ही शास्त्र पर और हिंसा पर विश्वास रखे, लेकिन सच्चा आस्तिक तो निर्विकार एवं निर्वैर भावना पर ही विश्वास करता है। यद्यपि हिंसा में भी शक्ति है, हिंसा की शक्ति पर श्रावकों ने भी संग्राम किये हैं, भरत बाहुबली भी लड़े हैं, लेकिन अन्तिम विजय अहिंसा की ही हुई है। जैनों को भगवान् महावीर के अहिंसा सिद्धान्त पर ही पूर्ण विश्वास है। इसलिए बमबाज बमों से, लट्ठबाज लट्ठों से चाहे मानते रहे लेकिन जैन फिर भी अहिंसा का ही उपयोग करेगा। वह अपनी उच्च भूमिका से नीचे नहीं उतर सकता।
श्रोतागण! आप वीरों के शिष्य हैं। घर में घुस कर छिप बैठने में वीरता या क्षमा नहीं है। जिन्हें दुःख में देखकर देखने वाले भी दुःखी हो जावें, पर दुःख पाने वाले उसे दुःख न समझें, बलिक देखकर दुःखी होने वालों को सान्त्वना दें-हिंसा दें, वही सच्चे वीर हैं। संसार में इससे बढ़कर दूसरी वीरता नहीं हो सकती। दुःख को भी सुख रूप में परिणत कर लेना अपनी सम्वेदनाशक्ति के प्रभाव से दुःख को सुख रूप में पलट लेना ही भगवान् महावीर की वीरता का आदर्श है।
दरवाजा बन्द करके घर में बैठे रहना वीरता नहीं है, मगर मरने के स्थान पर जाकर भी धैर्य त्यागने में वीरता है, महावीर का सच्चा अनुयायी भक्त द्वार बन्द करके घर में नहीं छिप रहता, वरन खुले मैदान में खड़ा हो जाता है और दृढ़ स्वर में कहता है-मेरा प्रभु पुरुषवरगन्धहस्ती है। मेरा कौन क्या बिगाड़ सकता है? १०० श्री जवाहर किरणावली