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गोशाला के द्वारा भगवान् महावीर का जैसा प्रकाश फैला है, वैसा प्रकाश गौतम स्वामी के होने पर भी नहीं हुआ, यदि कहा जाय तो अत्युक्ति न होगी। भगवान् महावीर का सच्चा स्वरूप गौशाला के निमित्त से ही संसार में प्रकट हुआ। गोशालक न होता तो महावीर की सच्ची महावीरता ही प्रकट न होती।
___ पहलवान की पहलवानी का ठीक-ठीक पता तब तक नहीं चलता, जब तक उसके सामने दूसरा प्रतिद्वंद्वी पहलवान न हो। प्रतिद्वंद्वी पहलवान के निमित्त से ही पहलवान की पहलवानी का संसार में प्रकाश होता है। इसका अर्थ यह नहीं कि प्रतिद्वंद्वी पहलवान, किसी पहलवान में बल का संचार करता है अथवा उसे देखकर पहलवान का बल आप ही बढ़ जाता है। पहलवान में बल की प्रबलता तो पहले से ही होती है, परन्तु जनता उसके बल को नाप नहीं पाती। उसे पहलवान के बल का परिमाण मालूम नहीं हो सकता। मगर जब उस पहलवान का मुकाबला करने के लिए दूसरा पहलवान खड़ा होता है, और दोनों में कुश्ती होती है तब उसके बल का पता लगता है। इसी प्रकार भगवान् में अनन्तज्ञान, अनन्त दर्शन और अनन्त बल-वीर्य था मगर गोशालक न होता तो उसका पता संसार को कैसे लगता? भगवान् की अनन्त शक्ति का प्रकाश गोशालक के निमित्त से हुआ।
केकैयी के निमित्त से रामचन्द्र की महिमा प्रकाशित हुई। विश्वामित्र ने सत्यनिष्ठ हरिश्चन्द्र की महत्ता प्रकाशित की। कमठ के उपसर्गों से भगवान् पार्श्वनाथ के बल-विक्रम का पता चला। इसी कारण नाटकों एवं कथाओं में नायक के विरोधी प्रतिनायक की कल्पना की जाती है। प्रतिनायक के साथ होने वाले संघर्ष के द्वारा ही नायक के गुणों का प्रकाश होता है।
गोशालक महावीर भगवान् का प्रतिद्वंद्वी था। भगवान् ने उसे जलने से बचाया और फिर उसके नियतिवाद को (होनहार के सिद्धान्त को) अपने पुरुषार्थवाद द्वारा परास्त किया। इस प्रकार गौशालक के निमित्त से भगवान् महावीर में अनेक गुणों पर प्रकाश पड़ता है।
तात्पर्य यह है कि गौशालक की घटना अपवाद रूप है। इस अपवाद से भगवान् के अतिशय में किसी प्रकार की शंका नहीं की जा सकती।
भगवान् पुरुषवरगन्धहस्ती थे। उनके अनुयायियों को उनके आदर्शों का अनुसरण करने वालों को भगवान् के चरण-चिह्नों पर चलने की भावना रखने वालों को विचारना चाहिए कि उनका कर्तव्य क्या है? ६६ श्री जवाहर किरणावली