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गंधहत्थी में ऐसी सुगन्ध होती है कि सामान्य हाथी उसकी सुगन्ध पाते ही त्रास के मारे भाग जाते हैं। वे उसके पास ठहर नहीं सकते। गंधहत्थी की इस उपमा से भगवान् के किस गुण की तुलना की गई है? इसका समाधान यह है कि भगवान् जिस देश में विचरते हैं उस देश में इति भीति नहीं होती ।
अतिवृष्टि होना, अनावृष्टि होना, टिड्डी दल, चूहों आदि का उत्पात होना ईति कहलाता है । इति रूप उपद्रव होने से मनुष्य समाज में हाय हाय मच जाती है और मनुष्य मरने-मारने को तैयार हो जाते हैं । भगवान् के चरण पड़ते ही पूर्ण शान्ति का साम्राज्य छा जाता है । ऐसी भगवान् की महिमा है । भगवान् की यह महिमा गंधहत्थी की उपमा द्वारा प्रकट की गई है।
भगवान् की इस महिमा के विषय में शास्त्र का प्रमाण है । समवायांग सूत्र में भगवान् के चौतीस अतिशय बताये गये हैं । उनमें एक अतिशय यह है कि जहां भगवान् जाते हैं वहां सौ-सौ कोस में महामारी, मृगी आदि ईतियां नहीं रह सकतीं - नई उत्पन्न नहीं होतीं और यदि पहले से हो तो मिट जाती
हैं ।
भगवान् के प्रताप से सौ-सौ कोस तक के उपद्रव मिट जाना गुण है, अवगुण नहीं। मगर तेरहपंथ मत के अनुसार इस गुण से भगवान को पाप लगना चाहिए। क्योंकि जिस देश में, सौ-सौ कोस तक के उपद्रव मिट जाते हैं, उस देश के सभी मनुष्य संयमी तो होते नहीं है। उपद्रव होने से उन असंयत लोगों को दुःख होता था । भगवान् के प्रभाव से वह दुःख मिट जाता है और शान्ति हो जाती है। तेरहपंथ के मतानुसार किसी का दुःख दूर करके उसे शांति पहुंचाना पाप है।
जो लोग यह कहते हैं कि दुःख पाने वाले अपने पूर्वोपार्जित पाप-कर्मो को भोगते हैं, अपने ऊपर चढ़े हुए ऋण को चुकाते हैं। ऋण चुकाने में बाध पहुंचाना - दुःख दूर करना अच्छा नहीं है। ऐसा कहने वालों को भगवान् के इस अतिशय पर विचार करना चाहिए। भगवान् जानते हैं कि मेरे जाने से अमुकदेश की प्रजा का दुःख दूर हो जायेगा, फिर भी वह उस देश जाते हैं। अगर भगवान् उस प्रजा का दुःख न मिटाना चाहते हों - दुःख मिटाना पाप हो तो भगवान् यह पाप कर्म करने के लिए जाते ही क्यों? वे किसी गुफा में ही क्यों न बैठे रहते?
भगवान् जहां विचरते हैं वहां प्रथम तो परचक्री राजा आजा ही नहीं है, अगर आता है तो उपद्रव नहीं करता । भगवान् के चरण-कमल जिस देश में पड़ते हैं, वहां के कलह-महामारी आदि उपद्रव मिट जाते हैं ।
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श्री जवाहर किरणावली