________________
लेश्या, भगवान् का ध्यान, अध्यवसाय, परिणाम आदि भी स्वाभाविक रूप से उज्ज्व ल हैं।
___ कुछ लोगों के कथनानुसार भगवान् में छदमस्थ अवस्था में छहों लेश्याएं विद्यमान थीं इनमें कृष्णलेश्या भी है। भगवान् में कृष्ण लेश्या मानने का असली कारण यह है कि भगवान् ने गौ शालक को मरने से बचाया था और मरने से बचाना उन लोगों की दृष्टि से पाप है। पाप, कृष्ण लेश्या से ही होता है, अतएव वह लोग भगवान में कृष्ण लेश्या का होना कहते हैं। मगर साधारण विचार से ही यह मालूम हो जाता है कि भगवान् में कृष्ण लेश्या की स्थापना करना अपनी अज्ञता प्रदर्शित करना है। भगवान् तो सदैव पुरुषों में श्रेष्ठ पुण्डरीक के समान हैं। जगत् में जितने श्रेष्ठ एवं शुद्ध भाव हैं, भगवान् उन सब भावों से परम विशुद्ध हैं।
पुण्डरीक कमल की उपमा देने का एक और अभिप्राय है। इस कमल में एक हजार पंखुड़ियाँ होती हैं। अगर उसे सिर पर रखा जाय तो हजार पंखुड़ियों के कारण वह छत्र बन जाता है। छत्र बना हुआ वह पुण्डरीक कमल शोभा भी बढ़ाता है और ताप से रक्षा भी करता है। साथ ही साथ सुगन्ध प्रदान करता है। इसी प्रकार भगवान् के शरण में जाने से भगवान् अपने सिर का छत्र मानने से, पुरुषों की भक्तों की समस्त अधिव्याधि नष्ट हो जाती है। भगवान् का शरण ग्रहण करने पर कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता। इसे कारण भगवान् को श्रेष्ठ पुण्डरीक कमल की उपमा दी गई है।
इसके अतिरिक्त, जैसे कमल मनुष्य का संताप हटा कर उसकी शोभा बढ़ाता है, इसी प्रकार भगवान् जीवों के संताप को दूर करते हैं और उनके स्वाभाविक गुणों का प्रकाश करके उनकी शोभा बढ़ाते हैं।
कमल में एक गुण और भी है। कमल जब खिलता है तो कीचड़ से मलीन नहीं होता। इसी प्रकार भगवान् भी निर्लेप हैं-पाप की मलीनता से वह लिप्त नहीं होते। किसी भी प्रकार का विकार उन्हें स्पर्श नहीं करता।
पुरिसवरगंधहत्थी__ सिंह मे सिर्फ वीरता है, सुगन्ध नही। पुण्डरीक में सुगन्ध है, वीरता नहीं, दोनों उपमाएं एकांगी हैं। भगवान् अनन्त वीरता और आत्मिक सद्गुणों के असीम सौरभी हैं। ऐसी कोई उपमा नहीं आई जिससे भगवान् के दोनों गुणों की तुलना की जा सके। अतएव शास्त्रकार एक और उपमा देता है - 'पुरिसवरगंधहत्थी। o
- श्री भगवती सूत्र व्याख्यान ६३