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हिन्दी अनुवाद तब से सागरचन्द्र अष्टमी-चतुर्दशी को निर्जन घर में अथवा श्मशान में एक रात्रि की प्रतिमा धारण करता है | धनदेव ने यह जानकर तांबे की सलाइयाँ (सइयाँ) बनवायीं । तत्पश्चात निर्जन घर में प्रतिमा में स्थित सागरचन्द्र की बीस उँगलियों के नाखूनों में (वे सलाइयाँ) चुभा दीं । उसके बाद श्रेष्ठ अध्यवसाय में स्थित, वेदना से पीड़ित पंचत्व प्राप्तकर देव बने । दूसरे दिन ढूंढते हुए आरक्षकों ने देखा | कोलाहल मचा | सलाइयाँ दिखाई दीं । आरक्षकों ने तांबा कूटनेवालों के पास जाना कि धनदेव ने बनवाई थीं | क्रोधित राजकुमार धनदेव को ढूंढते हैं । दोनों के सैन्यों का युद्ध प्रारम्भ हुआ । अतः देव बना सागरचन्द्र (देव) बीच में खड़े रहकर शांत करता है । तत्पश्चात् कमलामेला प्रभु के वरद हस्तों से दीक्षित बनती है ।
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