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प्राकृत 'इह 'सीहगरुडकेऊ, 2 संगामे रामलक्खणे 'जिणिउं । 'परमविभवेण "सीया, 'पच्छा 'ताणं 11 समप्पे 7 हं ।।168।।
2 न य 'पोरुसस्स 'हाणी, 'एव 'कए निम्मला य 'मे कित्ती । 10 होह (हि) इ 'समत्थलोए, 11 तम्हा ववसामि 12 संगामं ।।169 ।। संस्कृत अनुवाद इह सङ्ग्रामे सिंहगरुडकेतू, रामलक्ष्मणौ जित्वा । पश्चादहं ताभ्यां परमविभवेन सीता समर्पयामि ||168|| पौरुषस्य च न हानिरेवं कृते च मे निर्मला कीर्तिः । समस्तलोके भविष्यति, तस्मात् सङ्ग्रामं व्यवस्यामि ।।169।। हिन्दी अनुवाद
अतः इस युद्ध में सिंह और गरुड़ चिह्नवाले राम और लक्ष्मण को जीतकर बाद में मैं उनको परमसमृद्धिसहित सीताजी समर्पित करूंगा । (168) इस प्रकार करने पर पुरुषार्थ की हानि नहीं होगी और समग्र जगत में मेरा उज्ज्वल यश होगा, अतः मैं युद्ध करूंगा । (169)
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