________________
(6) नमिपव्वज्जा
प्राकृत 'चइऊण 'देवलोगाओ, 'उववन्नो 'माणुसम्मि 'लोगम्मि । 'उवसंतमोहणिज्जो, 'सरई 'पोराणियं जाई ।। 101 ।।
1 जाई 'सरितु भयवं, 'सयंबुद्धो 'अणुत्तरे 'धम्मे । 'पुत्तं 'ठवेत्तु 'रज्जे, 12 अभिनिक्खमइ "नमी "राया ।।102 ।। ±से 'देवलोगसरिसे, अन्तेउरवरगओ 'वरे 7 भोए । भुंजित्तु 'नमी 'राया, 'बुद्धो " भोगे " परिच्चयइ ।।103 ।।
2मिहिलं 'सपुरजणवयं, 'बल' मोरोहं च 'परियणं 'सव्वं । 'चिच्चा 'अभिनिक्खन्तो, " एगन्तमहिट्ठिओ 'भयवं ।।104 ।। ( 6 ) नमिप्रव्रज्या
संस्कृत अनुवाद
देवलोकाच्च्युत्वा, मानुषे लोके उपपन्नः । उपशान्तमोहनीयः, पौराणिकीं जातिं स्मरति ||101||
जातिं स्मृत्वा भगवान्, अनुत्तरे धर्मे स्वयंबुद्धः । राज्ये पुत्रं स्थापयित्वा, नमिराजाऽभिनिष्क्रामति ।।1021 अन्तःपुरवरगतः स नमिराजा, देवलोकसदृशान् वरान् भोगान् । भुक्त्वा बुद्धो, भोगान् परित्यजति ।।103।।
सपुरजनपदां मिथिलां, बलमवरोधं सर्वं च परिजनम् । त्यक्त्वाऽभिनिष्क्रान्तो, भगवान् एकान्तमधिष्ठितः ।।104 ।।
(6)
हिन्दी अनुवाद
नमिप्रव्रज्या में स्वयंसंबुद्ध बने नमिराजर्षि के साथ शक्रेन्द्र का संवाद :देवलोक में से च्यवकर मनुष्यलोक में उत्पन्न हुए और मोहनीय कर्म जिनका उपशान्त हुआ है, वैसे नमिराजर्षि अपने पूर्वभव के जन्म का स्मरण करते हैं । (101)
१५९