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संस्कृत अनुवाद यथा वा सिद्धार्थवनं, कर्णिकारवनं चम्पकवनं वा । कुसुमभरेण शोभते, इति गगनतलं सुरगणैः ।।87।।
गगनतले धरणितले, वरपटह-भेरी-झल्लरी
शङ्खशतसहस्त्रैः तूर्यैस्तूर्यनिनादः परमरम्यः ।।88।। तत्र देवा बहुभिरानर्तकशतैः ततविततं धनझुषिरं (शुषिरं), चतुर्विधमातोद्यं बहुविधिकं वादयन्ति । (89)
___ हिन्दी अनुवाद जिस प्रकार सरसव का वन, कनेरवृक्षों का वन या चम्पकवन पुष्पों के समूह से शोभता है उसी प्रकार सम्पूर्ण आकाश देवों के समूह से देदीप्यमान बनता है । (87)
आकाशतल और पृथ्वीतल पर उत्तम पटह, भेरी, झल्लरी और शंख इत्यादि लाखों वाजिंत्रों द्वारा अतिमधुर आवाज आ रही है । (88)
वहाँ देव भी सैकड़ों नृत्यकारों के साथ तत-वितत-घन-सुषिर स्वरूप वीणा आदि चारों प्रकार के वाद्ययंत्र विधिपूर्वक-तालबद्ध बजा रहे हैं । (89)
(3) इंदियविसयभावणा
प्राकृत् ण सक्का ण सोउं सद्दा, सोत्तविसयमागया । राग-दोसा उजे तत्थ, ते भिक्खू परिवज्जए ।।90।।
णसक्का रूवमदहूं, चक्खूविसयमागतं ।
राग-दोसा उ जे तत्थ, ते भिक्खू परिवज्जए ।।91।। ण सक्काणगंधमग्घाउं, णासाविसयमागतं । राग-दोसा उजे तत्थ, ते भिक्खू परिवज्जए । 192।। 5ण सक्कारसमणा सातुं, 'जीहाविसयमा गतं । श्राग-दोसा उजे'तत्थ, 1 ते भिक्खू परिवज्जए । 193।।
6ण'सक्का 'ण'संवेदेतुं, फासं 'विसय मागतं । 10राग-दोसा उजे तत्थ, 1ते 12भिक्खू परिवज्जए ।।94।।
आचाराङ्गद्वितीयश्रुतस्कन्धे ।
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