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11. हि. श्री हेमचन्द्रसूरिजी ने सिद्धहेमव्याकरण के आठवें अध्याय में प्राकृत
व्याकरण दिया है। प्रा. सिरिहेमचंदसूरिणो सिद्धहेमवागरणस्स अट्ठमे अज्झाए पाइयवागरणं
दासी। समास विग्रह :- सिरीए जुत्ता हेमचंदसूरिणो सिरिहेमचंदसूरिणो (उत्तरपदलोपिसमासः) । सिद्धहेमं च्चिअ वागरणं सिद्धहेमवागरणं तस्स सिद्धहेमवागरणस्स (कर्मधारयः) । पाइयं वागरणं पाइयवागरणं
(कर्मधारयः)। सं. श्रीहेमचन्द्रसूरिणा सिद्धहैमव्याकरणस्याष्टमेऽध्याये प्राकृत
व्याकरणमददुः । हि. इस जम्बूद्वीप में छह वर्षधर पर्वत और भरतादि सात क्षेत्र हैं। प्रा. एयम्मि जंबूदीवरिम छ वासहरा पव्वया, भरहाइय सत्त वासा संति ।
समास विग्रह :- भरहो आई जेसु ते भरहाइ (बहुव्रीहिः)। सं. एतस्मिन् जम्बूद्वीपे षड् वर्षधराःपर्वताः, भरतादयश्च सप्त वर्षाः
सन्ति । 13. हि. जीव दो प्रकार के, गति चार प्रकार की, व्रत पाँच प्रकार के और भिक्षु
की प्रतिमा बारह प्रकार की हैं। प्रा. जीवा दुविहा, गई चउबिहा, वयाइं पंचविहाइं, भिक्षुपडिमा य
दुवालसविहा हवन्ति ।।
समास विग्रह :- भिक्खुणो पडिमा भिक्खुपडिमा (षष्ठीतत्पुरुषः) । सं. जीवा द्विविधाः, गतयश्चतुर्विधाः, व्रतानि पञ्चविधानि, भिक्षुप्रतिमाश्च
द्वादशविधा भवन्ति । इस पण्डित ने इस व्याकरण के आठ अध्याय बनाये हैं और प्रत्येक अध्याय के चार-चार पाद हैं, उसके सात अध्याय और आठवें
अध्याय के दो पाद मैंने पढ़े हैं। . प्रा. अयं पंडिओ इमस्स वागरणस्स अट्ठ अज्झाए विहेसी, पइअज्झायं
य चत्तारि चत्तारि पाया संति, अहं तस्स सत्त अज्झाए, अट्ठमस्स य अज्झायस्स दुवे पाए भणीअ । समास विग्रह :- अज्झायं अज्झायं त्ति पइअज्झायं (अव्ययीभावः) ।
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