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________________ हि. हमारी मृत्यु होने पर परिपक्व उम्रवाला तू साधुजीवन का स्वीकार करना। 12. प्रा. किं मे कडं ?, किं च मे किच्चसेसं ?, किं च सक्कणिज्जं न समायरामित्ति पच्चूहे सया झाएयव्वं । समास विग्रह :- किच्चस्स सेसो किच्चसेसो, तं किच्चसेसं (षष्ठीतत्पुरुषः)। सं. किं मे (मया) कृतं ?, किं च मे कृत्यशेषं ?, किं च शक्यं न समाचरामीति प्रत्यूषे सदा ध्यातव्यम् । हि. मेरे द्वारा क्या किया गया ? मेरे करने योग्य क्या बाकी है ?, शक्य ऐसा मैं क्या नहीं करता हूँ ? इस प्रकार सुबह हमेशा चिन्तन करना चाहिए। 13. प्रा. जं जेण जया जत्थ, जारिस कम्मं सुहमसुहं उवज्जियं । तं तेण तया तत्थ, तारिसं कम्मं दोरियनिबद्धं व संपज्जइ ।।59।। समास विग्रह :- दोरियेण निबद्धं दोरियनिबद्धं (तृतीयातत्पुरुषः) । सं. येन यदा यत्र यादृशं, यत् शुभमशुभं कर्मोपार्जितम् ।। तेन तदा तत्र तादृशं, तत् कर्म दवरिकानिबद्धमिव संपद्यते ||59।। हि. जिसके द्वारा जब जहाँ जिस प्रकार का जो शुभ अथवा अशुभ कर्म उपार्जन किया गया हो, उसके द्वारा तब वहाँ उसी प्रकार का वह कर्म रस्सी से बँधे हुए की तरह प्राप्त किया जाता है । 14. प्रा. तं कुण धम्म, जेण सुहं सो च्चिय चिंतेइ तुह सबं । सं. त्वं कुरु धर्मं, येन सुखं स एव चिन्तयति तव सर्वम् । हि. तू धर्म कर, जिससे वह धर्म ही तेरे सब सुख का विचार करता है। 15. प्रा. खामेमि सब जीवे, सब्वे जीवा खमंतु मे । मित्ती मे सब्वभूएसु, वेरं मज्झं न केणइ ।।6011 समास विग्रह :- सवे य एए जीवा सव्वजीवा, ते सव्वजीवे (कर्मधारयः)। सव्वाइं च ताइं भूयाइं सबभूयाई, तेसु सव्वभूएसु (कर्मधारयः)। सं. सर्वजीवान् क्षमयामि, सर्वे जीवा मां क्षाम्यन्तु । मे सर्वभूतेषु मैत्री, मम केनचिद् वैरं न ||60|| हि. मैं सभी जीवों को क्षमा करता हूँ, सभी जीव मुझे क्षमा करें, मेरी सभी जीवों के साथ मित्रता है, मेरी किसी के साथ शत्रुता नहीं है। -930
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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