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________________ 17. जारिसो जणो होइ तस्स मित्तो वि तारिसो विज्जइ । 18. जो पच्छं न भुंजइ, तस्स वेज्जो किं कुणइ ? । • 19.अम्हेत्य पुण्णाणं पावाणं च कम्माणं फलं उवभुंजिमो । 20. नच्चइ गायइ पहसइ, पणमइ परिचयइ वत्थं पि । तूसइ रूसइ निक्कारणं पि मइरामउम्मत्तो ||1|| 21. स च्चिय सूरो सो चेव, पंडिओ तं पसंसिमो निच्चं । इंदियचोरेहिं सया, न लुटिअं जस्स चरणधणं ।।2।। प्राकृत मे अनुवाद करें 1. गुणो में द्वेष अनर्थ के लिये होता है । 2. सुवर्ण का पर्याय आभूषण है । 3. मन्दिर के शिखर पर मयुर नृत्य करता है । 4. आनन्द श्रावक सम्यक्त्व में निश्चल है | 5. मनुष्य पाप का फल देखता है, फिर भी धर्म नहीं कर पाता है इससे बढकर अन्य आश्चर्य क्या ? 6. बालक प्रभात में पिता को नमस्कार करता है, उसके बाद अपना अध्ययन करता है । 7. विह्वल मनुष्य को कार्य मे उत्साह नहीं होता है । 8. इस बाग में वृक्ष पर सुन्दर फल है । 9. वृद्धावस्था में शरीर जीर्ण होता है । 10. जो पथ्य का सेवन करता है वह बीमार नहीं होता है । 11. आचार्य तीर्थंकर समान कहलाते हैं । 12. साधर्मिकों का वात्सल्य इस लोक में धर्म और परलोक में मोक्ष प्रदान करता है। 13. मेघ पर्वत पर बरसता है । 14. साधु प्रवचन में जिनेश्वरों के चरित्र कहते हैं । 15. मैं मार्ग में भालू देखता हूँ । 16. हे मूर्ख ! तुम गरीबों को क्यों हैरान (परेशान) करते हो? 17. तुम दुर्जनों के वचनों पर विश्वास रखते हो इसलिए दुःखी होते हो । • सर्वनाम या अव्यय के बाद सर्वनाम या अव्यय हो तो बाद के सर्वनाम या अव्यय के आद्य स्वर का प्रायः लोप होता है । (१/४०) उदा. अम्हे + एत्य = अम्हेत्थ (वयमत्र) | जइ + अहं = जइहं (यद्यहम्) अज्ज + एत्थ = अज्जत्थ (अद्यात्र) । सो + इमो = सोमो (सोयम्) - ५७ -
SR No.023125
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykastursuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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