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6. य्-र-व-श्-ष-स् ये व्यंजनं श-ष- स के साथ आगे या पीछे जुड़े हों तो उस
व्यंजन का पूर्वोक्त (पा.9,नि.4-5) नियमानुसार प्रायः लोप होता है तथा पूर्व का ह्रस्व स्वर दीर्घ होता है । (१/४३) उदा. श्य . आवासयं (आवश्यकम्) | ष्य - सीसो (शिष्यः)
श्य · नासइ (नश्यति) र्ष - कासओ (कर्षकः) श्र - वीसामो (विश्रामः) ष्व - वीसुं (विष्वक्) र्श - संफासो ( संस्पर्शः) ष्ष - नीसित्तो (निष्षिक्तः) श्व - आसो (अश्वः)
स्य - सासं (शस्यम्) श्व - वीस्ससइ (विश्वसिति) स्त्र - वीसंभो (विस्रम्भः) श्श - मणासिला (मनश्शिला) | स्व - विकासरो (विकस्वरः)
| स्स . नीस्सहो (निस्सहः) 7. रुच्च् धातु के योग मे जिसको पसन्द हो उस शब्द को छठी विभक्ति
लगती है। उदा. बालाणं दुद्धं रुच्चइ ।
शब्दार्थ (पुंलिंग) अजीव (अजीव) अजीव, जड़. | मग्ग (मार्ग) रास्ता, मार्ग. अट्ठ । (अर्थ) धन, वस्तु, कारण, मंदर (मन्दर) मेरुपर्वत. अत्थ) पदार्थ, अर्थ.
मणूस (मनुष्य) मनुष्य. आणंद (आनन्द) विशेषनाम... मुणिंद (मुनीन्द्र) आचार्य, मुनिवर. छप्पअ (षट्पद) भ्रमर.
वग्घ (व्याघ्र) बाघ, व्याघ्र जीव (जीव) जीव.
वग्ग (वर्ग) समूह, वर्ग. दप्प (दर्प) अभिमान.
विणास (विनाश) नाश. धम्मिअ (धार्मिक) धर्मीजन. संफास (संस्पर्श) स्पर्श, छूना. नेह (स्नेह) स्नेह, प्रेम, प्रीति. सद्द (शब्द) शब्द, आवाज. पव्वय (पर्वत) पर्वत.
सप्प (सर्प) साँप. पच्छायाव (पश्चात्ताप) पश्चाताप. संतोस (संतोष ) संतोष. अनुताप.
सिंघ-सींह (सिंह) शेर. नपुंसकलिंग
आवासय । (आवश्यक) अवश्य करने अज्झयण (अध्ययन) अध्ययन.
आवस्सय, योग्य नित्यकर्म,
धर्मानुष्ठान. ४५