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________________ 11. तुम्हे पवयणं किं जाणेह ? 12. घरं धणं रक्खेइ । 13. सव्वो जणो कल्लाणमिच्छइ । 14. रामो सिवं लहेइ । 15. पावा सुहं न पावेन्ति । 16. मयणो जणं बाहए । 17. पुत्ता फुल्लाणि चिणंति । 18. मुक्खो वत्थाइँ उज्झेइ । 19. पण्णाइं पडेइरे । 20. एसो मुहं पमज्जेइ । 21. पयासेइ आइरिओ । 22. धणं चोरेइ चोरो । 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. मूर्ख लोग मोहित होते हैं । ज्ञान प्रकाशित होता है । कमल शोभा देता है । दो नेत्र देखते हैं । शिष्य ज्ञान पढ़ते हैं दो वृक्ष गिरते हैं । 23. आयवो जणे पीडेइ । 24. 25. 26. 9. राम पुस्तक का स्पर्श करता है । 10. दो बालक आभूषण ले जाते हैं। 11. उपाध्याय ज्ञान का उपदेश देते हैं । 12. धन बढ़ता है । 13. पंडित पुस्तकों को चाहते हैं और मूर्ख धन की इच्छा करते हैं। 27. अहं पावं निंदेमि । 28. रहो चलेइ | 29. अम्हे नाणं इच्छामो । 30. 31. प्राकृत में अनुवाद करें 18. घोड़े जल पीते हैं । 19. देव तीर्थंकरों को नमस्कार करते 20. हैं । 21. देवा अब्भं विउव्विरे, जलं च सिंचेति । रामो पण्णाइं डहेइ । स पोत्थयं गिण्हेइ, अहं च भूसणं गम | 22. 23. 24. 25. 26. 27 14. वह सिद्ध होता है । 15. पंडित मोक्ष प्राप्त करता है । 16. मूर्ख लज्जित नहीं होते हैं । 17. वियोग मनुष्य को दुःख देता है । ३६ अम्हे वत्थाणि पमज्जेमो । जाई जिणबिंबाई ताई सव्वाइं वंदामि | साधु तप करते हैं । बालक वस्त्र को खींचता हैं । हम सूत्र का विचार करते हैं । पुत्र पिता को नमस्कार करते हैं । पानी सूखता है । बालक पानी पीता है । राम पापी को मारता है । पंडित रक्षण करते हैं । बालक डरते हैं । अभिमान लोगों को पीड़ा देता हैं ।
SR No.023125
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykastursuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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