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धातु
पड्
वर्तमानकाल
पाडइ
पाडेइ
पडावइ
पडावेइ
हस् हासइ
हासेइ
हसावइ
हसावेइ
बोल्ल् बोल्लइ
पडावउ
पडाविहिइ पडावन्तो
पडावेईअ पडावेउ पडावेहिइ पडावेन्तो
हासिहिइ
हासन्तो
हासेहिइ
हासेन्तो
हसावउ
हसाविहिइ
हसावन्तो
हसाउ
हसावेहिइ
हसावेन्तो
बोल्लउ
| बोल्लहिइ
बोल्लन्तो
बोल्लेईअ
बोल्लेन्तो
बोल्लेउ बोल्लेहिइ बोल्लावउ बोल्लाविहिइ बोल्लावन्तो
बोल्लेइ बोल्लावइ बोल्लावीअ बोल्लावेइ बोल्लावेईअ बोल्लावेउ बोल्लावेहिइ बोल्लावेन्तो बोल्लविइ बोल्लाविईअ बोल्लविउ बोल्लविहिइ बोल्लविन्तो
भूतकाल
भमावइ
भमावेइ
भमाड
अइ
एइ
पाडीअ
पाडेईअ
पडावीअ
आइ
आवेइ
अविइ
भम् भामइ भामीअ
भामेइ
हसावेईअ
बोल्लीअ
विध्यर्थ- आज्ञार्थ भविष्यकाल क्रियातिपत्त्यर्थ
पाडिहिइ
पाडन्तो
पाडेहिइ पाडेन्तो
हासीअ हासउ
हासेईअ
हासेउ
हसावीअ
पाडउ
पाडेउ
भामेईअ
भावीअ
भामउ भामिहिइ
भामन्तो
भामेउ
भामेहिइ
भामेन्तो
भमाविहिइ
भमावन्तो
भमावेहिइ भमावेन्तो
भमाडिहिइ
भमाडन्तो
नेइहिइ
नेएहिइ
भमावउ
भावेईअ भमावेउ
भमाडीअ भमाडउ
असी
अउ
एसी
नेएउ
आवसी
आवेसी
अविसी
आवउ
आवे
अविउ
नेआविहिइ
नेआवेहिइ
अविहिइ
अन्तो
एन्तो
आवन्तो
आवेन्तो
अविन्तो
7. (1) धातु के प्रेरक अंग को पूर्वोक्त कृदन्त के प्रत्यय लगाने से प्रेरक हेत्वर्थकृदन्त, सम्बन्धकभूतकृदन्त, वर्तमानकृदन्त, भविष्यकृदन्त और विध्यर्थ कर्मणिकृदन्त बनते हैं ।
(2) मूल धातु को आवि प्रत्यय लगाकर भूतकृदन्त के प्रत्यय लगाने से अथवा धातु के उपान्त्य अ का आ करके भूतकृदन्त के प्रत्यय लगाने से कर्मणि भूतकृदन्त बनता है ।
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