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________________ पाठ प्रेरक भेद 1. धातुओं के प्रेरक रूप- मूल धातु को अ, ए, आव और आवे प्रत्यय लगाकर उस-उस काल के पुरुषबोधक प्रत्यय लगाने पर बनते हैं । 2. प्रेरक धातु में उपान्त्य अ हो तो अ अथवा ए प्रत्यय लगाने पर अ का आ बनता है । - उदा. हस् + अ = हास + इ = हासइ हस् + ए = हासे + इ = हासेइ 22 हस् + आव = हसाव + इ = हसावइ हस् + आवे = हसावे + इ = हसावेइ ने + अ = अ + इ = नेअइ उदा. रिय् + अ = रेय - रेयइ बुह् + अ = बोह - बोहइ मूल धातु पड् कर् ने + ए = नेए + इ = नेएइ ने + आव = नेआव + इ = नेआवइ ने + आवे = नेआवे + इ = नेआवेइ 3. मूल धातुओं में उपान्त्य इ अथवा उ हो तो प्रायः इ का ए और उ का ओ होता है । पाड पाडे कार कारे वह हँसाता है । ( वह लिवाता है ।) | 4. धातु में आदि स्वर गुरु हो तो अवि प्रत्यय भी लगता है । उदा. बोल्लवितोसवि १७० तुस् + अ = तोस तोसइ तुड् + अ = तोड़-तोडइ 5. आव-आवे प्रत्यय लगाने पर कुछ स्थानों में पूर्व अ का आ होता है । उदा. कारावइ - कारावेइ 6. भम् धातु का प्रेरक अंग विकल्प से भमाड भी होता है । उदा. भमाड प्रेरक अंग पडाव कराव - पडावे करावे
SR No.023125
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykastursuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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