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________________ सामासिक शब्द उच्छाहसत्ति (उत्साहशक्ति) उत्साह | निअसीलबलेणं (निजशीलबलेन) अपने और शक्ति को शील के बल से चउगइभवे (चतुर्गतिभवे) चार गतिरूप नियववसायाणुरूवं __ संसार में | (निजव्यवसायानुरूपम्) जलपूरीकओ (जलपूरीकृतः) पानी से अपने व्यवसाय के अनुरूप __ भरा हुआ| धातु तुद्द आरम्भ (आरभ्य सं. भू. कृ.) आरम्भ | प + वज्ज् (प्र + पद्य) = स्वीकार करना करके, चालू करके वि + वाह (वि + वाहय्) = विवाह करना तुड् । (त्रुट) = टूटना संध् (सं + धा) = जोड़ना, सन्धि करना, पसन्द करना, प्रेम करना निवट् । (नि + वृत् - वर्त) = वापिस सूय् (सूचय) = सूचना करना निअट् आना, पीछे आनासोह (शोधय) = शुद्ध करना, ढूंढ़ना हिन्दी में अनुवाद करें1. देविंदेहिँ अच्चिअं सिरिमहावीरं सिरसा मणसा वयसा वंदे । 2. महासईए सीयाए अप्पाणं सोहन्तीए निअसीलबलेण अग्गी जलपूरीकओ । गुरुया अप्पणो गुणे अप्पणा. कयाइ न वण्णन्ति । नराणं सुहं वा दुहं वा को कुणइ ? अप्पण च्चिय कयाइं कम्माइं समयम्मि परिणमंति । 5. जइ उ तुम्हे अप्पणो रिद्धिं इच्छह, तो निच्चपि जिणेसरं आराहह । जो कोहेण अभिभूओ जीवे हणेइ, सो इह जम्मे परम्मि य जम्मणे वि अप्पणो वहाइ होइ। 7. नायपुत्तो भयवं महावीरो सिद्दत्थस्स रण्णो अवच्चं होत्था । 8. अरिहंता मंगलं कुज्जा । अरिहंते सरणं पवज्जामि । 9. गयणे अच्छरसाणं नच्चं दीसइ । 10. भिसया तणुस्स वाही अवणेन्ति, लोगोत्तमा य भगवंता सूरिणो य मणसो आहिणो हरन्ति । 11. सरए इत्थीओ घराणं अंगणे अच्छरसाउ व्व गाणं कुणन्ति नच्चंति अ । 12. मुणओ पाउसे एगाए वसहीए चिठ्ठन्ति । 13. जए दयालवो जणा बहुआ न हवन्ति । १६७ ॐ
SR No.023125
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykastursuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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