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10. मूलधातुओं को इर प्रत्यय लगाने पर कर्तृसूचक कृदन्त बनता है । उदा. हस् = हसिरो (हसनशीलः) = |रोविरं = (रुदनशीलम्) = रोनेवाला
हँसनेवाला भम् = भमिरो (भ्रमणशीलः) = भ्रमण हसिरा । (हसनशीला) हँसनेवाली
करनेवाला हसिरी)
|भमिरा । (भ्रमणशीला) भ्रमण हसिरं (हसनशीलम्) = हँसनेवाला भमिरी ) करनेवाली रोव् = रोविरो (रुदनशीलः) = रोनेवाला भमिरं (भ्रमणशीलम्) भ्रमण करनेवाला रोविरा । (रुदनशीला) = रोनेवाली रोविरी
इसी तरह लज्जिरो = लज्जावान, जम्पिरो = बोलनेवाला, वेविरो =
कम्पन करनेवाला, नमिरो = नम्र, गबिरो = गर्विष्ठ इत्यादि । 11. कर्तृसूचक कृदन्त सिद्ध संस्कृत पर से भी बनते हैं। कत्ता (कर्ता) = करनेवाला | पायगो । (पाचकः) = पकानेवाला कुंभआरो) (कुम्भकारः) = कुम्भार पायओ) कुंभारो ।
| भत्ता। (भर्ता) = पोषण करनेवाला गंता (गन्ता) = जानेवाला
भट्टा जायगो । (याचकः) = मांगनेवाला लोहयारो। (लोहकारः) = लुहार जायओ)
लोहारो दायगो । (दायकः) = देनेवाला सुवण्णआरो) (सुवर्णकारः) = सोनी दायओ।
सुवण्णगारो 12. शब्द के अन्दर त्व का च्च, थ्व का च्छ, द्व का ज्ज और ध्व का ज्झ
प्रयोगानुसार बनता है । (२/१५) उदा. किच्चा (कृत्वा)
पिच्छी (पृथ्वी) विज्जं (विद्वान्)
बुज्झा (बुद्ध्वा) 13. शब्द में संयुक्त व्यंजन का अन्त्याक्षर ल हो तो उसके पूर्व इ रखी जाती
है। उदा. किलिन्नो (क्लिन्नः) | सिलोओ-गो (श्लोकः)
किलेसो (क्लेशः) गिलायइ। (ग्लायति) सिलिटुं (श्लिष्टम्) गिलाइ ।
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