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________________ पाठ - 20 कृदन्त 1. कृदन्त के दो प्रकार हैं । विशेषणरूप कृदन्त और अव्ययरूप कृदन्त । 2. हेत्वर्थ और संबंधक भूतकृदन्त अव्ययरूप कृदन्त हैं, उनको कोई विभक्ति नहीं लगती है। 3. उपर्युक्त दो सिवाय के कृदन्त विशेषणरूप कृदन्त हैं, उनके तीनों लिंगों में रूप बनते हैं। अव्ययरूप कृदन्त हेत्वर्थ कृदन्त 1. धातुओं के अंग को उं-तुं प्रत्यय लगाने पर हेत्वर्थ कृदन्त बनता है, इस प्रत्यय के लगने पर पूर्व अ का इ अथवा ए होता है तथा आर्ष में त्तए-तुं प्रत्यय भी लगता है। उदा. सुण + उ = सुणिउं, सुणेउं । हस + उ = हसिउं, हसेउं सुण + तुं = सुणितुं, सुणेतुं हस + तुं = हसितुं, हसेतुं सुण + त्तए = सुणित्तए, सुणेत्तए | हस + त्तए = हसित्तए, हसेत्तए सुण + तुं = सुणित्तुं , सुणेत्तुं | हस + तुं = हसित्तुं , हसेत्तुं (श्रोतुम्) = सुनने के लिए । (हसितुम्) = हँसने के लिए झाअ + उ = झाइउं, झाएउं झाअ + तुं = झाइतुं, झाएतुं झाअ + त्तए = झाइत्तए, झाएतए (ध्यातुम्) = ध्यान करने के लिए झाअ + तुं = झाइत्तुं, झाएतुं झा + उ = झाउं झा + तुं = झातुं चय = चइउं, चएउं, चइतए, चएतए, चतुं, चएतुं (त्यक्तुम्) = त्याग करने के लिए। कर = करिउं, करेउं, कस्तिए, करेत्तए, कस्तुिं, करेतुं (कर्तुम्) = करने के लिए। . स्व -१४१
SR No.023125
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykastursuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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