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________________ अप्प (अल्प) थोड़ा असब्भ (असभ्य) खराब, सभ्य नहीं इयर (इतर) अन्य दूसरा, हीन उच्च (उच्चक) उन्नत, ऊँचा उच्चअ कयग्घ (कृतघ्न) उपकार नहीं माननेवाला किअंत (कियत् ) = कितना . = (विशेषण) = = नमकहराम, गुरुअ ( गुरुक) = बड़े, ज्येष्ट ठिअ (स्थित) = खड़ा रहा हुआ, रहा वीसत्य (विश्वस्त) = विश्वासवाला | सीयल (शीतल) = ठण्डा, हुआ शीत थेर ( स्थविर ) = वृद्ध, वृद्ध जैन साधु स्पर्शवान दयालु (दयालु) = दयावान धवल (धवल) = सफेद, श्वेत धुत्त (धूर्त) = ठग | निम्मल (निर्मल) = स्वच्छ पच्चक्ख (प्रत्यक्ष) = साक्षात्, खुल्ला, प्रत्यक्ष भद्द) (भद्र) = कल्याण करनेवाला, भद्र } सुखी, सरल स्वभावी रउद्द] ( रौद्र) = दारुण, भयंकर, } भीषण रोद्द (सामासिक शब्द) अन्नुन्नरूव (अन्योन्यरूप) = परस्पर | महिलामण (महिलामनस्) = स्त्रियों का स्वरूपवान मन इंदियवग्ग (इन्द्रियवर्ग) = इन्द्रियों का विविहचरित (विविधचरित्र) = अलगसमूह जोयणपरिमंडल (योजनपरिमंडल) अलग चरित्र गोलाकार योजन प्रमाण नयसहस्स (नयसहस्र) = हजारों नीति भिच्चगुण (भृत्यगुण) = नौकर के गुण मच्छवहगाइ (मत्स्यवधकादि) ससिरवि (शशिरवि) = चन्द्र और सूर्य सिहरपरंपरा (शिखरपरंपरा ) = शिखरों की परम्परा सुयणदुज्जणविसेस (सुजनदुर्जनविशेष) = सज्जन-दुर्जन का भेद मच्छीमार आदि सुरहि (सुरभि ) = सुगन्धवाला अव्यय इणं (इदम्) यह (इदम् सर्व प्र. एकव .) | समंता (समन्तात् ) = चारों तरफ केणइ (केनचित् ) = किसी के द्वारा जहसत्ति (यथाशक्ति) = शक्ति अनुसार सव्वओ ( सर्वतः) = सब तरफ सक्खं (साक्षात्) = प्रत्यक्ष हु ) ( खलु ) = निश्चय, वितर्क, खु} भावना, वर्थ में १३८
SR No.023125
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykastursuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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