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प्र. पु.
प्र. पु.
द्वि. पु.
तृ. पु.
कर (कृ)
करिस्सं, करिस्सामि, करेस्सं, करेस्सामि
वगैरह रूप हस् धातु के अनुसार जानने चाहिए ।
दा
दाहं, दास्सं, दास्सामि, दाहामि,
दाहिम
दाहिसि, दाहिसे, दास्ससि, दास्ससे दाहिइ-दाहिए, दाही,
दास्सइ, दास्सए
करिहामि, करिहिमि,
करेहामि, करेहिमि
दास्सामा -- म दाहामो-मु-म दाहिमो-मु-म
"
१०७
·
दाहिस्सा, दाहित्या दाहित्था, दाहिह,
दास्सह
दाहिन्ति - न्ते, दाहिरे, दास्सन्ति-न्ते
षइ भाषा में प्रथम पुरुष एकवचन में हिस्सं प्रत्यय भी लगता है । उदा. हसिहिस्सं, नेहिस्सं, करिहिस्सं, होहिस्सं (षड्० २-६-३३) शब्दार्थ (पुंलिंग)
आलाव (आलाप) = सूत्र का आलावा | मिच्च (नृत्य) = नौकर, कर्मचारी, सेवक उज्जयंत (उज्जयन्त) = गिरनार पर्वत मक्कड (मर्कट) = बन्दर कलि (कलि) = कलियुग, कलह, लोद्धअ (लुब्धक) = शिकारी लोह (लोभ) = लोभ, तृष्णा सत्थ (सार्थ) = सार्थ, मुसाफिरों का
झगड़ा
गीयत्थ) (गीतार्थ) = साधु की सामाचारी गीय जाननेवाले साधु गोवाल (गोपाल) = गोपाल जटिल (जटिल ) = तापस, जटाधारी तावस ( तापस) = तापस, योगी पारद्धि (पापर्धि) = शिकारी
समूह
| समय (समय) = काल, समय, अवसर साण (श्वन्) = कुत्ता
| सामि (स्वामिन् ) = स्वामी, मालिक | सिरिवद्धमाण (श्रीवर्धमान) = चौबीसवें जिनेश्वर, श्रीमहावीर