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________________ आओ संस्कृत सीखें ॐ 325 हिन्दी का संस्कृत में अनुवाद 1. धिया मयूरव्यंसक-छात्रव्यंसकौ नु तौ नृपौ पतद्भिः पत्रिभिः, पतद्भिः पत्रिभिः प्लक्ष-न्यग्रोधाविव रराजतुः । 2. स्निग्धं वाक्त्विषं तथापीठछत्रोपानहमुद्वहन् नारदस्तौ नृपौ शस्त्रपातभयेन धवखदिरपलाशं प्रविश्यैक्षिष्ट । 3. तौ (नृपौ) भ्रात्रोः पुत्रयोर्नु प्रजहतुः । (अत्र नैमित्तिकमधिकरणम् तस्मात् निमित्त-सप्तमी) 4. कुमारस्य पितरौ (पार्वतीपरमेश्वरौ) प्रद्युम्नस्य च मातापितरौ (कृष्णरुक्मिण्यौ) तुभ्यं क्रुद्धौ स्तः, इति मूलराज उवाच । 5. अश्वरथं श्रितान् द्विषो दंशमशकममन्वानो लक्षनृपश्चापं जग्राह । 6. तस्मिन्लक्षे नृपे इषून्वर्षति ब्राह्मण क्षत्रिय-विट्शूद्रास्त्रेसुः । 7. ब्राह्मण-क्षत्रिय-विट्-शूद्रंत्राता मूलराजोऽपि जयाय चापंजग्राह, जयाय च भेरीशङ्खमुवाद । 8. विरोधतोहिनकुलं नु तौ (नृपौ) देवासुरैरस्तूयेताम् । पाठ 35 संस्कृत का हिन्दी में अनुवाद 1. प्रारंभ किए इच्छित ग्रन्थ की समाप्ति के लिए ग्रंथकार अभीष्ट देवता की स्तुति करता है। प्रयत्न से पीलनेवाला (मनुष्य) रेती में से भी तेल पा ले और प्यास से पीड़ित मृगजल से भी पानी पी ले, पर्यटन करने वाला (मनुष्य) किसी दिन मृग के शृंग को पा ले, लेकिन कदाग्रही मूर्ख मनुष्य के चित्त को कोई भी साध नहीं सकता है - बदल नहीं सकता है । 3. हे राजन् ! अगर इस पृथ्वी रूपी गाय को दोहना चाहते हो, तो आज ही इस लोक को बछडे की तरह पुष्ट करो, अच्छी तरह निरंतर पोषण होने पर यह पृथ्वी कल्पलता की तरह अनेक प्रकार के फल देती है । 4. मूर्ख से भी मूर्ख ऐसा मैं कहाँ ? और वीतराग प्रभु का स्तवन कहाँ ? अतः मैं चलकर बड़े जंगल को पार करने की इच्छावाले पंगु जैसा हूँ। 5. सूरि बोले, भवदत्त ! यह तरुण कौन आया है? वह बोला हे भगवन् ! दीक्षा 2.
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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