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________________ आओ संस्कृत सीखें 299 पाठ 17 संस्कृत का हिन्दी में अनुवाद 1. हे मित्र ! यह आसन है, तू इस पर बैठ ।। 2. हर मार्ग पर राज्य के लोग कुमार को प्रणाम करते हैं। 3. जाओ, सभी प्रकार से तुम्हारा मार्ग कल्याणकारी बने । 4. वह एक पुरुष है, जो कुटुंब का भरणपोषण करता है । 5. हंस वास्तव में दूध को ग्रहण करता है और उसके साथ रहे हुए पानी को छोड़ देता है। प्रधान, राजा, मंत्री तथा सामंतों से असहाय ऐसे मुझे, अत्यधिक सैन्य जिसने दिया उसने मुझे पवित्र दिन में भेजा । जिस प्रकार स्वर्ग में असंख्य देव हैं और आकाश में असंख्य तारे हैं, वैसे ही परमात्मा में असंख्य गुण हैं । 8. धन के साधन रूप सामग्री को प्राप्त कर स्त्री भी धन कमाती है । 9. आपको मुनि परमपुरुष मानते हैं । 10. जैसे जैसे प्रयत्न भाग्य से सिद्धि प्राप्त नहीं करता है, वैसे वैसे धीरपुरुषों के हृदय में अधिक उत्साह होता है। 11. हर ऐक महीने में कृष्ण और शुक्ल पक्ष की चांदनी समान होती है, फिर भी उन दोनों में से एक पक्ष शुक्ल कहलाता है, क्योंकि यश पुण्य द्वारा प्राप्त होता है । 12. विद्या और विनय युक्त ब्राह्मण में गाय, हाथी, कुत्ता और चांडाल में भी पंडित पुरुष समान दृष्टि वाले होते हैं । 13. रात्रि में दीपक, समुद्र में द्वीप, मारवाड में वृक्ष, बर्फ में अग्नि, उसी प्रकार . कलिकाल में दुःख से प्राप्त हो ऐसे, आपके इन चरण कमलों की रज प्राप्त हुई है। 14. असंयमी इन्द्रियों को आपत्ति का मार्ग कहा है और इन्द्रियों पर जय संपत्ति का मार्ग है, जो मार्ग इष्ट हो, उस मार्ग से जाए। 15. अग्नि, पानी, स्त्री, मूर्ख, सर्प और राजकुल ये छह तत्काल प्राण लेने वाले हैं इसलिए इनका सेवन सावधानीपूर्वक करना चाहिए । 16. अच्छा स्वप्न देखकर सोना नहीं और दिन में अच्छे गुरु को कहना, लेकिन खराब स्वप्न देखकर ऊपर कहा उससे विरुद्ध करना । 17. नीति में निपुण मनुष्य, निंदा या प्रशंसा करो, लक्ष्मी आओ या इच्छा से जाओ, मृत्यु आज हो या दूसरे काल में हो, लेकिन धीर पुरुष न्याय मार्ग से एक डग भी विचलित होते हैं।
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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