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________________ आओ संस्कृत सीखें 280 21. पृथ्वी, समुद्र और पर्वत को पार कर सकते हैं, लेकिन राजा के मन को किसी के द्वारा या कैसे भी, कभी भी समझ नहीं सकते। 22. वास्तव में जिसका जन्म, याचना करनेवाले मनुष्य की मनोवृत्ति को पूर्ण करने के लिए नहीं है, उसके द्वारा यह भूमि अति भारवाली है, परंतु वृक्षों से, पर्वतों से और समुद्रों से अतिभार वाली नहीं है। हिन्दी का संस्कृत में अनुवाद 1. मुनयः परिषहान्सहन्ते । सूर्य उदयति कुमुदानि च म्लायन्ति । 3. व्यवसायिभिर्जनैस्त्वर्यते । 4. व्याघ्रा अपि पलायन्ते ज्वलज्ज्वलनदर्शनात् । 5. स्वं न श्लाघ्यम् । 6. सूर्यस्य तापेन तङागस्थतोयं उत्क्वथति । 7. तव वपुः विभ्राजते । 8. स्पर्धमाणाय कर्मणा नमोऽस्तु वर्धमानाय । पाठ 2 संस्कृत का हिन्दी में अनुवाद 1. साधु सदाचार का पालन करते हैं । 2. घास भी गाय के दूध के लिए समर्थ है । 3. गधे आपस में दाँतो से काटते हैं। 4. तू उस कथा को छुपा मत, (छुपाए बिना) कह । 5. जो मन को नियम में जोड़ता है, वास्तव में उसके पाप नष्ट हो जाते हैं । 6. याचकों को धन (इच्छित) देने वाले राजा ने उत्कृष्ट ख्याति प्राप्त की। 7. कमल के पराग को चूस चूस कर भ्रमर खुश हों। वे दोनों पति-पत्नी, बार बार मीठे झरणों के पानी को पीते-पीते वृक्ष की गाढ़ छाया में आराम करते करते अलग अलग फूलों को सूंघते-सूंघते पर्वत ऊपर चढ़े। 9. उसके बाद चोरों ने सभी मनुष्यों के अलंकार आदि को लूटना शुरू किया । 10. सूर्य के तपने पर रात्रि, लोगों की दृष्टि के आवरण के लिए कैसे समर्थ हो? 0
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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