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________________ आओ संस्कृत सीखें 1261 (विद्) ग्रहण करने की इच्छावाला ग्रहण कर (ग्रह) सोने की इच्छावाला सोकर जिस प्रकार कृतकृत्य होता है, उसी प्रकार उसके दुःख से बारबार रोने की इच्छावाला ऐसा मैं, उस कन्या का इस पट्ट में आलेखन कर यहाँ लाकर कृतकृत्य बना हूँ। लोग धन इकट्ठा करने की इच्छावाले हैं किंतु देने की इच्छावाले नहीं हैं (अर्प - अर्पिपयिष) 7. तुम मरने की इच्छा नहीं करते हो, उसी तरह दूसरों को मारने की इच्छा न करो (मा हन् - अद्यतनी) 8. शूर्पणखा के कहने से रावण ने सीता को अपने अन्त:पुर में लाने की इच्छा की (आ+नी-परोक्षा) और सीता के आग्रह से राम ने मृग को पकडने की इच्छा की (ग्रह)। 9. वल्लभ के साथ युद्ध कर के किसी राजा ने अपने हाथ की शक्ति देखने की इच्छा नहीं की (दृश्) किंतु सभी रक्षण के लिए अपने इष्ट देवता का स्मरण करने की इच्छा कर रहे थे (स्मृ)। हिन्दी में अनुवाद करो 1. प्रारिप्सितस्य ग्रन्थस्य निर्विघ्नपरिसमाप्तये ग्रन्थकृदभीष्टदेवतां स्तौति । 2. लभेत सिकतासु तैलमपि यत्नतः पीडयन्, पिबेच्च मृगतृष्णिकासु सलिलं पिपासार्दितः। कदाचिदपि पर्यटशशविषाणमासादयेत्, न तु प्रतिनिविष्टमूर्खजन चित्तमाराधयेत्॥ 3. राजन्दुधुक्षसि यदि क्षितिधेनुमेनाम्, तेनाद्य वत्समिव लोकममुं पुषाण । तस्मिंश्च सम्यगनिशं परिपुष्यमाणे नानाफलं फलति कल्पलतेव भूमिः ।। क्वाहं पशोरपि पशु र्वीतराग-स्तवः क्व च । उत्तितीर्घररण्यानी पद्भ्यां पङ्गुरिवारम्यतः ॥ 5. सूरिरूचे भवदत्त ! तरुणः कोऽयमागतः । सोऽवदद्भगवन्दीक्षां जिघृक्षुर्मेऽनुजो ह्यसौ ॥ 6. मृगा वायुमिवारूढा रथनिर्घोषभीरवः । प्रायः प्रयान्त्यमी व्योम्नि जिहासन्तो महीमिव ।
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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