SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 254
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आओ संस्कृत सीखें - - 228 कान्ता भार्या यस्य स कान्तभार्यकः, कान्तभार्याकः । लक्ष्मीभार्यकः, लक्ष्मीभार्याक :। प्रियखट्वकाः, प्रियवखट्वाका, प्रियखट्विका (स्त्री लिंग में इ भी होता है) पूर्वपद विधि 11. विशेषण स्त्री लिंग शब्द, समान विभक्ति में रहे स्त्री लिंग उत्तरपद पर पुंवत् होता है, परंतु ऊ (ऊ) प्रत्ययांत शब्द पुंवत् नहीं होता है। उदा. दर्शनीया भार्या यस्य स दर्शनीयभार्यः । पट्वी भार्या यस्य स पटुभार्यः । परंतु करभोरू भार्य: यहां पुंवत् नहीं होगा। 12. सर्वनाम स्त्री लिंग शब्द पुंवत् होता है। उदा. दक्षिणपूर्वा । भवत्याः पुत्रः भवत्पुत्रः । (षष्ठी तत्पुरुष) 13. तुम् और सम् के म् का मनस् और काम उत्तरपद पर लोप होता है। उदा. भोक्तुं मनः यस्य स भोक्तुमनः गन्तुं कामः यस्य स गन्तुकामः सम्यग् मनः यस्य समनाः । सकाम । 14. धर्म आदि उत्तरपद में हो तो समान का स होता है। उदा. समानो धर्मः यस्य स सधर्मा, सनामा, सरूपः, सवयाः। समासांत प्रत्यय 15. सक्थि और अक्षि अंतवाले बहुव्रीहि से अ (ट) होता है। उदा. दीर्घ सक्थि यस्य स दीर्घसक्थः। स्त्री लिंग - दीर्घसक्थी । विशाले अक्षिणी यस्य यस्या वा विशालाक्षः, विशालाक्षी । कमले इव अक्षिणी यस्य यस्या वा कमलाक्षः, कमलाक्षी । 16. संख्यावाचक शब्द अंत में हो ऐसे बहुव्रीहि से अ (ड) होता है। उदा. द्विः दश = द्विदशाः । इसी प्रकार द्वित्रा:, द्विचताः, पञ्चषाः । 17. न, सु, वि, उप और त्रि शब्द के बाद चतुर् शब्द हो तो ऐसे बहुव्रीहि से अ (अप) होता है। उदा. अविद्यमानानि चत्वारि यस्य सोऽचतुरः । शोभनानि चत्वारि यस्य स सुचतुरः ।
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy