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________________ आओ संस्कृत सीखें - 2022 6. गम् धातु से आत्मनेपदी स् (सिच्) विकल्प से कित् जैसा होता है। कित् होने से म् का लोप होता है और स् (सिच्) का लोप होगा । उदा. समगत, समगस्त । 7. हन् धातु से आत्मनेपदी स् (सिच्) कित् होता है। उदा. आहत, आहसाताम् । कित् होने से न् का लोप होता है । 8. स्वीकार करना और लग्न करना - इस अर्थ में यम् धातु से स् (सिच्) विकल्प से कित् है। उदा. उपायत, उपायंस्त कन्याम् । 9. उप् + यम् - स्वीकार और लग्न करना अर्थ में आत्मनेपदी है । उदा. कन्यामुपयच्छते ! 10. स्था धातु और दा संज्ञावाले धातुओं से आत्मनेपदी स् (सिच्) कित् होता है, उस प्रसंग पर धातु के अंत्य स्वर का इ होता है । उदा. उपास्थित, उपास्थिषाताम्, उपास्थिषत । . - आदित, आदिषाताम् । व्यधित, व्यधिषाताम्, व्यधिषत । 11. अद्यतनी में हन् का वध् आदेश होता है। आत्मनेपद में विकल्प से वध् होता है। (वध् आदेश सेट् है, अत:वृद्धि नहीं होती है) उदा. अवधीत्-परस्मैपद में आत्मनेपद में - आवधिष्ट, आहत । आवधिषाताम्, आहसाताम् । अधि+इ - पढना - अध्यगीष्ट, अध्यैष्ट । अध्यगीषाताम्, अध्यैषाताम् । यहाँ गी का गुण नही होता है। विशिष्ट धातुओं के उदाहरण प्रच्छ अप्राक्षीत् अप्राष्टाम् अप्राक्षुः । त्यज अत्याक्षीत् अत्याक्ताम् अत्याक्षुः । पच् परस्मै. अपाक्षीत् अपाक्ताम् अपाक्षुः । आत्मने. अपक्त अपक्षाताम् अपक्षत । अधाक्षीत् अदाग्धाम् अधाक्षुः । अवात्सीत् अवात्ताम् अवात्सुः
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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