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________________ आओ संस्कृत सीखें प्राच् = पूर्व देशकाल (विशेषण) = सत्य (विशेषण) धातु-अञ्च्-गण 1 (परस्मै ) = जाना, धूर्व् - गण 1 ( परस्मै ) पूजा करना सुनृत 152 स्पृश् स्पर्श करनेवाला (विशेषण) हन्त = खेद अर्थ में (अव्यय) 4. 5. 6. 7. 8. 9. = = हिंसा करना, धूर्वति संस्कृत में अनुवाद करो 1. सूर्य (अर्यमन्) पूर्व दिशा में उगता है (उद् + इ ) और पश्चिम (प्रत्यच् ) दिशा में अस्त होता है (अस्तम् + इ ) । 2. उत्तर दिशा (उदच्) में मेरु है, और दक्षिण दिशा (अवाच्) में लवण समुद्र है । 3. पुष्पों को छोडकर प्रौढ़ स्त्रियों के मुख को सूंघने के लिए भ्रमर (मधुलिह) बार बार आते हैं । इन महाराजाओं से (सम्राज्) इन्द्र ( तुराषाह्) लज्जा पाता है । इस नगरी के लोग शास्त्र शम, समाधि और सत्य में आगे हैं (प्राच्) धर्म के ज्ञाता (धर्मबुध) साधुओं (परिव्राज्) द्वारा धर्म का उपदेश दिया जाता है। काव्य कवि की कीर्ति को सभी दिशाओं में फैलाता है (तन्) । इन्द्र (वृत्रहन्) के आयुध को वज्र कहते हैं । जयसिंह के राज्याभिषेक के बाद मंत्र का उच्चारण करते हुए याज्ञिक पुरोहित ने मंत्र से पवित्र किए हुए ( मन्त्रपूत) पानी, अक्षत आदि द्वारा मंगल किया । 10. जैन साधु पाँव में जूते ( उपानह) नही पहिनते है । 11. ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये चार वर्ण हैं । हिन्दी में अनुवाद करो 1. किं वाऽभविष्यदरुणस्तमसां विभेत्ता तं चेत्सहस्रकिरणो धुरि नाकरिष्यत् । 2. भवतीनां सूनृतयैव गिरा कृतमातिथ्यम् । 3. आहार इवोद्वारै गिरा भावोऽनुमीयते । 4. उपादेया शास्त्र - लोकव्यवहारानुगा' गीः । 5. तिर्यञ्चोऽपि रक्षन्ति पुत्रान्प्राणानिवात्मनः । 6. त्वमपि सम्राजं सुतमवाप्स्यसि । 7. यस्य यादृशी भावना सिद्धि र्भवति तादृशी ।
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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