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________________ आओ संस्कृत सीखें 2104 धातु के 10 गणों का पृथक्करण 1. सातवें गण में प्रत्येक धातु से 'हि' का 'धि' होता है - उदा. रुन्द्धि। दूसरे-तीसरे गण में व्यंजनांत धातु से 'हि' का 'धि' होता है, सिर्फ हन् का जहि और रुदादि पाँच में रुदिहि आदि । • स्वरांत धातु से 'हि' अवश्य होता है - जिहिहि (हु को छोड़कर-जुहुधि)। • पाँचवें गण में स्वरांत धातुओं से 'हि' का लोप होता हैं-उदा. चिनु। परंतु व्यंजनांत धातुओं से 'हि' का लोप नहीं होता है। उदा. शक्नुहि। • आठवें गण में प्रत्येक धातु से 'हि' का लोप होता है । उदा. - तनु । • पहले, चौथे, छठे और दसवें गण में प्रत्येक धातु से 'हि' का लोप होता है। • नौवें गण में 'हि' कायम रहता हैं । उदा. - क्रीणीहि, परंतु व्यंजनांत धातुओ में विकरण सहित 'हि' का आन होता है। उदा. पुषाण । 2. व्युक्त तीसरे गण के धातुओं से तथा जश् आदि पाँच धातुओं से अन्ति और अन्तु के बदले अति और अतु होता है। 3. द्विष् धातु से, दूसरे गण के आकारांत धातुओं से अन् का उस् (पुस्) विकल्प से होता है और विद् धातु, जश् आदि पाँच धातु तथा तीसरे गण के धातुओं से उस् नित्य होता है। 4. पहले, चौथे, छठे और दसवें गण के अकारांत धातुओं से विध्यर्थ प्रत्ययों में 'या' का 'ई' तथा माम् का इयम्, युस् का इयुस् होता है तथा आथाम्, आथे, आताम्, आते प्रत्ययों के आ का इ होता है। 5. पाँचवें, आठवें, नौवें, सातवें, दूसरे और तीसरे गण में अन्ते, अन्त और अन्ताम् के बदले अते, अत और अताम् होता है। शी धातु से रते, रत और रताम् होता है। पहला गण विभाग : पहले, चौथे, छठे और दसवें गण में स्वरांत और व्यंजनांत दोनों प्रकार के धातु हैं। प्रत्येक गण में अ (शव्) य (श्य) अ (श) तथा अ (शव्) विकरण प्रत्यय लगने के बाद धातु अकारांत बनते हैं। क्योंकि प्रत्येक के प्रत्यय अकारांत हैं। इस कारण इन सभी के रूप एक समान हैं, दसवें गण के धातु स्वरांत हैं, क्योंकि उन्हें इ (णिच्) प्रत्यय लगता है। दूसरा गण विभाग : (पाँचवाँ, आठवाँ, नौवाँ और सातवाँ गण)
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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