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भी विचार पञ्चाशिका. (१) महास्कंध, वेदक समकित, क्षायोपशम समकित अने उद्योत ए अदार पुद्गलिक छे, एम श्रुतमां कहेलं छे. २८-३०.
हवे समठिम मनुष्यनी गति अने आगति नामनो चोथो विचार कहे छे:-- नेरइअ देव अगणी वाउ य वज्जिअ असंख जीवा ओ। सेसा सव्वे वि जिआ समुच्छिममणुएसु गच्छंति ॥३१॥ _____ अर्थ-नारकी, देवता, अतिकाय, वायुकाय, असंख्याता आयुष्यवाळा तिर्यच अने मनुष्यो-एटलाने वर्जिने वाकोना सर्वे संसारी जीवो संमूर्छिम मनुष्यमां जाय छे (उत्पन्न थाय छे). ३१ नेरइअदेवजुअला वज्जिअ सेसेसु जीवठाणेसु। संमुच्छिमनराणं गमणं सव्वे वि पढमगुणठाणी ॥३२॥ ____अर्थ-संमूर्हिम मनुष्योनी उत्पत्ति नारकी, देव अने युगलियाने वर्जिने बाकीना जीव स्थानकोने विषे होय छे, अने तेओ सर्व प्रथम गुणस्थानमा वर्तनारा एटले मिथ्यादृष्टि, अन्तर्मुहर्तनी भवस्थितिवाळा अने बेथी नव मुहूतनी कायस्थितिवाळा होय छे. ३२
हवे पर्याप्तिनुं स्वरुप (पांचमो विचार) कहे छे:आहार सरीरिदिय उसासे वय मणे छ पज्जत्ती। चउ पंच पंच छप्पिय इगविगलाऽमणसमण तिरिए ॥३३॥
अर्थ-आहार पर्याप्ति, शरीर पर्याप्ति, इंद्रिय पर्याप्ति, उच्छास पर्याप्ति, वचन पर्याप्ति अने मन पर्याप्ति ए छ पर्याप्तिओ छे. तेमां एकेन्द्रियोने पहेली चार पर्याप्तिओ होय छे, विकलेन्द्रिय एटले द्वौद्रिय, त्रों द्रिय अने चतुरिद्रियने पहेली पांच पर्याप्तिो होय छे, असंज्ञी मनुष्य अने तिर्यचने एटले संमूर्छिम पंचेन्द्रिय मनुष्य अने