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मूल तथा भाषांतर.
एहिं तो अप्पंमि पए सवग्गे तइय वज्जरियं । सव्वे लोगागासे तेयसकम्माण गाहणयं ॥ १५॥
अर्थ-उपर कहेला बे शरीर करतां अल्प ( थोडा) प्रदेश वर्गमां त्रीजा आहारक शरीरनी अवगाहना कहेली छे. तथा तेजस अने कार्मण शरीरनी उत्कृष्ट अवगाहना सर्व लोकाकाश प्रदेशमा कहेली छे. १५० ___ हवे पांचे शरीरनीस्थिपिनो भेद ( आठमो) कहे छे. अंतोमुहुत्त लहुयं ओरालिय आउमाण संगहियं । गुरुयं तिपल्लमुत्तं वेउब्वे अह भणिस्सामि ॥६॥
अर्थ--औदारिक शरोरना आयुष्यनुं प्रमाण (स्थितिनुं मान) जघन्य अंतर्मुहूतनुं कहेलुं छे, अने उत्कृष्ट त्रण पल्योपमनुं कर्तुं छे. हवे वैक्रिय विपे कहुं छु १६.
दसवरससहस्साई उक्कोसं सागराणि तितीसं ॥ उतरवेउव्वियंमि लहुयमुहत्तं गुरुयमेवं ॥ १७ ॥
अर्थ--(वैक्रिय शरीरनुं आयुष्यमान ) जघन्य दश हमार वर्षर्नु अने उत्कृष्ट तेत्रीश सागरोपमनुं छे तथा उत्तर वैक्रियर्नु (आयुष्य ) जघन्यथी अंतर्मुहूर्तर्नु छ, अने उत्कर्षथी आ प्रमाणे छे, एटले आगळ लखेली जोवाभिगमनी ग थामां कर्तुं छे ते
प्रमागे छे.
अंतोमुहुत्त निरएसु होइ चत्तारि तिरिमणुएसु । देवेसु अद्धम सो उकोसविउविजे कालो ॥ १८ ॥
* मही स्थित परलं ते शरीराला ज बोनुं आयुष्य जा जवू. अवगाहनाना पयमा जे स्थित-स्थिति एवा शब्दो उपाय छ, अमुक क्षेत्रन ध्यापोने रहवं ते छे.