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श्री कास्थिति मकरम. (४७) बडे भाषाने योग्य एवां दळीयां ग्रहण करीने भाषापणे परिणमावीने त्या अवलंबन करीने मुके ते भाषा पर्याप्ति. ५. तथा जे शक्तिवडे मनोर्गणानां दळीयांने ग्रहण करीने मनसणे परिणमा. वीने तथा अवलंबन करीने मननकार्यमां समर्थ थाय, ते मन पर्याप्ति कहेवाय छे. ते नां एकेन्द्रियोने पहेली चार पर्याप्तिो होय छे. विकलेन्द्रियने भाषासहित पांच पर्याप्तिओ होय छे. अमनस्क एटले संमूर्छिम मनुष्य अने पियचोने पहेली पांच पर्याप्तिओ होय छे तथा समनस्क एटले गर्भज तिथंचोने मन सहित छए पर्यातिओ होय छे. ४२. गन्भयमणुआणं पुण छप्पिा पज्जत्ति पंच देवेसु । जं तेसि वयमणाणं दुवे वि पज्जत्ति समकालं ॥ ४३ ॥ ____ अर्थ-गर्भज मनुष्योने छए पर्याप्तिी होय छे. संमृर्छिम मनुष्यो अपर्याप्तपणेज मरण पामे छे, तेमी तेमने पहेली त्रण पर्यालिओज संभवे छे.* केमके करण अपर्माप्तपणे कोइ अपर्याप्ता जीवने पण मरणनो संभव नयी. तथा देव अने नारकोओने पांच पर्याप्तिओ होय छे; कारण के तेमने वचनपर्याप्ति अने मनपर्याप्ति सपकाळेज थाय छे, तेथी तेमने पांच कहेवाय छे. ४३. . ___ हवे पहेला त्रण शरीरने विषे सर्व पर्यातिओने योग्य एवा काळनु प्रमाण कहेबाने इच्छता सता कहे छे:उरालविउव्वाहारग छन्ह वि पबत्ति जुगवमारंभे। ताण वि पढमिगसमए बीआ पुण अंतमोहुत्तो ॥४४॥
अर्थ-औदारिक, वैक्रिय अने आहारक ए त्रणे शरीरने विषे समकाळे छए पर्यातिओनो आरंभ थाय छे, एवी व्यवस्था
* सामान्य समूछमि पंचेन्द्रियने पांच पर्याप्तिमो कहेल छ.