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मूळ तथा भाषांतर.
विगेरे पहेरे छे. ६. तेनी आगळ व्यवसाय सभा होय छे, तेमां आवी त्यां रहेला शाश्वत पुस्तको वांचीने धार्मिक व्यवसायादिक ग्रहण करे छे. ७. तेनी आगळ नंदा पुष्करिणी (वाव) होय छे, तेमां हाथ पग वोडने तेमां उगेळां कमळो लइ जिनभवनमां आवी गर्भ गृह (गभारा) मां रहेली पांचसे धनुष्यना देहमानवाळी एकसोने आठ जिन प्रतिमाओनी सत्तर भेदी आदि पूजा, स्तुति, वंदना विगेरे शक्रस्तव कहंवा पर्यंत करे छे. ८. त्यार पछी समग्र विमानने चंदनना छांटा नांखीने पूजे छे, पछी नंदा पुष्करिणीना आगळ बाळपीठ होय छे, त्यां आवीने तेओ बळीदान मूके छे. ९. जीवाभिगमनी वृत्तिमां विजय देवना अधिकारमां आठमे स्थाने बलिपीठ अने नवमे स्थाने वापी कही छे, ते मतान्तर छे, एम जणाय छे. दरेक विमानमां आ नव स्थानको त्रण त्रण द्वारवाळां अने मूळ प्रासादयी इशान खूणमांज अनुक्रमे रहेलां होय के. जीवाभिगम अने राजप्रश्नीय उपांग विगेरेमां पण एज प्रमाणे कां छे. २८.
ते नव स्थानको पैकी छ स्थानकोमां प्रत्येकं प्रत्येके त्रणे द्वारोमां जे जे होय छे, ते कहे छे.
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मुहमंड पिच्छमंडव थूभं चेइअ' झउअ पुखरिणी । जम्मुत्तरपुवासुं जिण भवणसभासु पत्ते ॥ २९ ॥
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अर्थ - पश्चिम दिशा सिवाय दक्षिण, उत्तर अने पूर्व दिशामां एकेक द्वार होय छे. ते त्रणे द्वारमां प्रवेश करतां प्रथम मुख मंडप होय . १. तेनी आगळ प्रेक्षामंडप होय छे. २. तेनी आगळ स्तूप होय छे, ते स्तूपनी उपर आठ मंगळ होय छे, स्तूपनी चारे दिशाओम एकेक मणिपीठ होय छे, ते दरेक मणिपीठ उपर स्तूपनी सन्मुख अनुक्रमे ऋषभ, वर्धमान, चंद्रानन, अने वारिषेण नामनी एक एक जिनमतिमा होय छे. ३. ते स्तूपनी आग़ळ चैत्य वृक्ष