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जो कास्थिति प्रकरण. (३५) म्यार शाश्वत चैत्योने हुं वंदना करुं छु. उर्ध्व लोकमां जे ८४९७०२३ चैत्यो तथा अधोलोकमां ७७२००००० चैत्यो तथा व्यंतर अने ज्योविष्कोने विषे असंख्याता चैत्यो शाश्वतां कह्यां छे, ते अन्य ग्रंथोमा स्पष्ट रीते कयां छे, त्यांथो जाणवां• अहीं तो तिर्यग लोकमां रहेला चैत्योनां स्थानकानीज विवक्षा करो छे. ते आ प्रमाणे श्रीच वर्षधर पर्वतो उपर त्रीश चैत्यो छे. कारण के दरेक पर्वत उपर एक एक चैत्य छे. तथा १७० दीर्घ वैवाध्य पर्वतोपर एकसोने सीतेर बापत चैत्यो छे.
ते विषे काले के:वीसं गयदंतेसुं कुरुदुमदसगे तहेव न उई। घरुखारगिरिसु असिई पणसिई मेरुपणगंमि ॥२५॥
- अर्थ-२० गजदंत पर्वतो उपर वीश चैत्यो छे, तथा देवकुरु उत्तर कुरुमा रहेला जंबूक्षादिक दश वृक्षोपर नेवु चैत्यो छे. ते आ प्रमाणे-ए वृक्षना मध्यनी उर्व शाखापर एक अने तेनी दिशाओ तथा विदिशाओ मळी आठ वाजुए रहेला आठ कूटनी उपर एक एक चैत्य होवाथी दरेक वृक्षे नव नव. चैत्यो थयां, तेथी दश वृक्षना नेवू चैत्यो थयां तथा (पांच महा विदेहमां कहेला) असी वृक्षस्कार पर्वतोपर अंशी चैत्यो छे. तथा पांच मेरु पर्वतना थइने पंचाशी चैत्यो छे. ते आ प्रमाणे-चारे अवनोमां चारै दिशाए एकेक चैत्य होवाथी सोळ अने एक चैत्य चूलिकापर होवायी मेरू पर्वत सतर सतर चैत्यो छे. तेथी पांच पर्वतना मळोने पंचाशा चैत्यो छे.२४ इसुमणुकुंडलरुअगे चउ चउ वीसं च नंदीसरदीवे । अडवीसनंदिकुंडलिरुअगे सयपत्नवासयरी ॥२५॥
* भगशाळ, नंदन, सोमनस ने पांडक ए चार वनो जाणवा.