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श्री पंच निग्रंथो प्रकरण. कुशोर अने स्नातक सर्व काले होय है. कारणक महाविदेहमा सवंदा संभवे. ९१. निग्गथा य पुलाया इक्कं समयं जहनओ हुंति । उक्कोसेण पुण ते अंतमुहत्तं चि य हवंति ॥९२।।दा०२९ निग्गया-निग्रंथ हुंति-होय छ । चिय-निमें पुलाया-पुलाक उकोसेणं-उत्कृष्टवी -एक
पुण बळी हवंति-होय छे. अर्थ:-निग्रंथ अने पुलाक जयन्यथी एक समय अने उत्कृपृथी अंतर्मुहर्त निथे होय छे. ९२.
विवंचनः-निग्रंय अने पुलाकनो जघन्ययी एक समयनो काल जाणवो अने एफनोज अंतर्मुहूर्त काल तेहने समये वीजो पुला कपणं पडिवर्जे एम एक समये बेनो जघन्यथी सद्भाव होय. उत्कृ. पृषी ते निग्रंथ तथा पुलाक अंतर्मुहूर्त होय. फेर एटलो के एकनी स्थितिना अंतर्मुहूर्तयी घणानी स्थितिनुं अंतर्मुहूर्त मोढुं होय. ९२. अंतोमुहतमेसि जहन्नओ अंतरं तु पंचण्हं। उक्कोसेण अवर्ट पुग्गल परिअह देसूणं ॥ ९३ ॥ . पसि-एम, पंचण्ह-पांचर्नु पुग्यलपरिअट्ट-पु जहमओ-जघन्य अवई-अपार्ध-अर्धा । गळपरावर्त मंतर-मंतर . मां ओटुं दे सूप-देशे-ऊणु
अर्थः-ए पांचनु जघन्य अंतर अंतर्मुहूर्त. अने उत्कृष्टयी देशेऊ[. अर्थ पुद्गल परावर्तन. ९३,
विवेचन:-नवे त्रीसमें अंतरद्वार कहे के:-स्नातक सिवाय पाकीना पांचवें जघन्य अंतर अंतर्मुहूर्तनुं. आ अंतर एक जीवनी अपेक्षाए. एक पुलाक पुलाकपणुं छोडीने जघन्यथी अंतर्मुहर्तयां पारीची पुलाकपई पावे ते एक जीव लामी अंतर जावई स्मपाव