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श्री पंच निग्रंथी प्रकरणे
अर्थ :- निर्ग्रन्थ अने स्नातकनुं परस्पर तुल्य एटळे एकज संयमस्थान होय. तेनाथी पुलाक अने वकुस प्रत्येकना असंख्यातगुणा६१तेनाथी प्रतिसेवना कुशल अने कपाय कुशीलना असं खतात गुणा. ए छपनां प्रत्येके चारित्रना पर्यायो अनंता होय. ६२
विवेचन: - निर्ग्रन्थ तथा स्नातकनां संयमस्थान सौथी थोडां अने तुल्य बनेने सरखं अने एकज संयम स्थान होय, तेथी पुलाकनिग्रन्थ तथा बकुशनि ग्रंथ ए दरेकना अध्यवसाय स्थाना असंख्यात गुणा, तेथी प्रतिसेवना कुशील अने कषाय कुशीलनां प्रत्येके अध्यवसाय स्थानो असंख्यात गुणा होय. एवी रीते संपमद्वार कहूं. ए छए निर्गन्थना प्रत्येकना चारित्रना पर्यायो अनंता होय छे. ६१-६२
सट्टाणं संनिगासे पुलओ पुलयस्स पज्जवेहिं समो । ही हिओ छट्टाणा परठाण कसाइणो एवं ॥ ६३॥
पज्ज वे हिं-पर्याय
समो- समान
हीण-होन अहिओ-अधिक
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सद्वाणं स्वस्थान संनिगा से - संनिकर्ष
पुलओ - पुलाक
पुलायस्स - पुलाकना
अर्थः- स्वस्थान संनिकर्ष पुलाकने पुलाकना पर्यायो साथै सरखो हीन अथवा अधिक एम छ स्थान होय, परस्थानमां कषाय कुशीलने एमज. ६३
छट्ठाण - स्वस्थान
परट्ठाण - परस्थान कसाइणो- कषायी एवं ए प्रमाणे.
विवेचन :- हवे पंनरमुं निकर्षद्वार कहे छे:-निकर्ष एटले संयोग. अयां परस्परना पर्यायोनी विशुद्धिनं हीनाधिक पं. ते प्रकारे १वस्थान संनिकर्ष. २परस्थान संनिकर्ष स्वस्थान संनिकर्ष एटले स्वजातिनो एक बीजा साथे जेमके पुलाकनी पुलाक साथे अने परस्थान एटले भिन्न जातिनो जेमके पुलाकनो कुशील साथै
हवे पुलाको स्वस्थान संनिकर्ष आ ममाणे:- पुलाकनो पुलाक