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मूळ तया भाषांतर.
(२६१ )
इम-प्रथममा
थी वजो-श्रीवेद तिनो-प्रण वेदी चिय-निश्चे वर्जी
उपसंत-उपशांत रागमिष-रागद्वारने पुलाओ-पुलाक खीणवेओ-क्षीणवेदी बउस-बकुश निग्गंथो-निर्ग्रन्थ पडिसेवगा-प्रतिसेवा बहायओ-स्नातक तिवेयाधि-प्रण वेदो खधियवेओ-क्षपितवेद चउरो-चार . सकसाओ-सकषायो । एवं-ए प्रमाणे सरागति-सरागी
अर्थः-खीवेद वर्जीने पुलाक होय. बकुस अने प्रतिसेवाक त्रण वेदी होय. कषाय कुशील त्रण वेदी, उपशांतवेदी अथवा श्रीण वेदी होय. उपशांत अथवा क्षीणवेदी निर्ग्रन्थ होय स्नातक क्षपक वेदी होय. एज प्रमाणे रागद्वारने विषे प्रथमना चार सरागो होय. ३७-३८.
विवेचन:-हवे पांच निग्रन्यने विषे बीजुं वेद द्वार कहे छे:पुलाक निर्गन्थने स्त्री वेद विना बाकीना वे घेद होय कारण के स्त्रीने पुलाक लब्धि नथी. वकुश निर्गन्ध तथा प्रविसेवा कुशील ए बे निर्ग्रन्यने त्रण वेद होय. कषाय कुशील त्रण भांगे होयः-१ छठे, सातमे अने आठमे ए त्रण गुणठाणे वर्तता, त्रणे वेदी होय, २ ते उपरना गुणठाणे वर्तता उपशम श्रेणीवाळा कपायी उपशांत वेदो होय अने ३ क्षपक श्रेणीवाला क्षीणवेदी होय. चोथा निर्गन्य निर्गन्य उपशांत वेदी तेमज क्षीणवेदी होय. ३७. अगियारमे तथा बारमे गुणठाणे वर्तता निर्गन्य निर्गन्ध होय, माटे अगिआरमे गुण. ठाणे वर्तमा उपशांत वेदी अने वारमे गुणठाणे वर्तता क्षीणवेदीहोय स्नातक क्षपक वेदी ज होय. तेरमे, चौदभे गुणठाणे वेदनो अभाव होवायी. हवे त्रीर्जु रागद्वार कहे छे:
एज प्रमाणे रागदारे जाणवू. एटले प्रथमना चार-१ पुलाफ २ बकुच ३ प्रतिसेवा कुशील अने ४ कषाय कुशील ए चार सरा.