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बुढ तथा भाषांतर.
( १२१ ) छे: - केवलज्ञान सिवायना बाकीना मति, श्रुत, अवधि अने मनः पर्यव ए चार ज्ञान तथा मति अज्ञान, श्रुत अज्ञान अने विभंगज्ञान ए त्रण अज्ञान ए सान ज्ञानावरणीय कर्मना क्षयोपशमथी होय. चक्षु अचक्षु अने अवधि ए ऋण दर्शन दर्शनावरणीय कर्मना क्षयोपशमथी थाय. देशविरति अने सर्वविरति चारित्र मोहनीयना क्षयोपशमयीदानादि पांच लब्धिओ पांच प्रकारना अंतराय कर्मना क्षयोपशमथी ए प्रमाणे त्रीजा भावना अढारभेद जाणवा.
दानादि लब्धिओ वे प्रकारे छे. क्षायिकी अने क्षयोपशमिकी. अंतराय कर्मना क्षययी थाय ते क्षायिकी केवलीनेज होय. अने अंतराय कर्मना क्षयोपशमथी यएली क्षायोपममिकी ते छद्मस्थोने होय. हवे चोथा औदयिक भावना भेद कहे छे:
अन्नाण मसिद्वत्ता संजमलेसाकसायगइवेया । मिच्छं तुरिए भव्वाभव्वत्तजियत्त परिणामे ॥ ७ ॥
अनाणं-अज्ञान
गइ-गति
भव्य भव्यत्व
असिद्धता - अद्वित्व
घेया- वेद
असंजम असंयम
लेसा-लेश्याषट्रक
कषाय-कषाय
मिच्छं-मिथ्यात्व
अभव्वत- अभव्यत्व
जियत्त- जीवत्व
। तुरिए चोथा
परिणामे पारिणामिक
अर्थः- अज्ञान, असिद्धत्व. असंजम, लेश्या, कषाय, गति, वेद अने मिथ्यात्व ए चोथाभावना अने भव्यत्व, अभव्यत्व अने जीवत्व ए पारिणामिक भावना भेद जाणवा. ७
विवेचनः - चोथा औदयिक भावना २१ भेद आ प्रमाणे:१ मिथ्यात्व तथा ज्ञानावरणीयना उदयथी थएल अज्ञान. २ आठ प्रकारना] कर्मना उदयथी एल असिद्धत्व, ३ असंयम प्रत्याख्याना वरणीयना उदयथी एल अविरतिपणुं ४ थी ९ कृष्णादि लेश्या छ मोहनीयना उदययी ( अथवा आठे कर्मना उदयथी अथवा नाम