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थी भाव प्रकरण.
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अर्थ :- केवलज्ञान, केवलदर्शन, क्षायिक समकित क्षायिक, चारित्र अने दानादि लब्धिओ एम नव भेद क्षायिक भावना अने उपशम भावना समकित अने चारित्र ए वे भेद, ५.
विवेचनः - हवे प्रथम औपशमिक भावना वे भेद:- १ उपश्रम समकित २ उपशम चारित्र- अनंतानुबंधी कषाय चार तथा दर्शन मोहनीय ( समकीतमोहनी, मिश्रमोहनी अने मिथ्यात्व मोहनी ) ए सात प्रकृतिनो रसोदय तथा प्रदेशोदय न होय ते उपशम समकित प्रथम सम्मक्त्व उत्पत्तिकाले तथा उपशम श्रेणिमां होय छे. बीजुं उपचम चारित्र उपशम श्रेणिमां चारित्र मोहनीयना उपशमथी होय.
वोजा क्षायिक भावना नव भेद १ केवल ज्ञानावरणीय कर्मना क्षयथी केवलज्ञान. २ केवल दर्शनावरणीय कर्मना क्षयथी केवलदर्शन. ३ दर्शनमोहनीय कर्मना क्षयथी क्षायिक समकित ४ चारित्रमोहनीय कर्मना क्षयथो क्षायिक चारित्र तथा ५ थी ९ अंतराय कर्मना क्षयी दानलब्धि. लाभलब्धि, भोगलब्धि उपभोगलब्धि अने वीर्यलब्धि ए पांच क्षायिक लब्धिओ. ५.
नाणा चउ अण्णाणा, तिष्णिय दंसण तिगं च गिहिधम्मो । वेअगसव चारितं, दाणाड़ग मिस्सगा भावा ॥ ६ ॥ दंसणतिर्ग-दर्शन त्रिक तिचारित्र गिहिधम्मो गृहस्थधर्म वेग-वेदक समकित मिस्सगा-मिश्र सवचारितं सर्व विर | भाषा-भाष
दाणाइन - दानादिक
नाणा-ज्ञान
खंड-चार
अणणाणा-अज्ञान
तिणि-त्रण
अर्थः- ज्ञान चार, अज्ञान त्रण, दर्शन त्रण, गृहस्थधर्म (देशविरति चारित्र ) वेदक सम कित, सर्व चारित्र, दानादिक पांचलब्धि ए मिश्रभावना भेद ६.
विवेचनः - हवे जीजा क्षयोपशम भावना भडार भेद कहे