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सिद्धपंचाशिका:
दसपरिहारजुए ७ बुद्धि बोहिथी वीस जीव वीस पह ८ । मसु मइसुअमणनाणे दस सेस दुगि ओहो ९१५
तिथयरी - तीर्थंकरी जिण तीर्थंकर
पत्ते अबुद्ध - प्रत्येकयुद्ध संबुद्ध- स्वयं बुद्ध
दु-बे
चउ-चार
बउरो-चार
गिद्दि गृहस्थलिंगी
पर - अन्यलिंगी
सलिंग - स्वलिंगी परिहारविणु-परिहार सिवाय
ओहो ओघ सामान्य जुए युक्त, सहित
विवेचन - तीर्थंकरी, जिन, प्रत्येक बुद्ध अने स्वयंबुद्ध अनुक्रमे बे, चार, दस अने चार. चार, दश अने एकसो आठ अनुक्रमे गृहस्थ, अन्य, अने स्वलिंगी परिहार विना ओय. १४.
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बुद्विषोह- बुद्धियोधित इत्थी - श्री जीव-जीवो
वीसहू-वीस पृथक्त्व
महसुअ-मति अने श्रुत दुगि-वे
सेस - वाकीना
परिहार सहित दस, बुद्धिवोधी स्त्री बीस, जिवो, वीस पृथमत्व, मति श्रुत ज्ञानी चार मनि श्रुत अने मनः पर्यवज्ञानी दस, बाकीना वे मांगे ओव. १५.
विवेचन - ५ तीर्थद्वारने विषं तीर्थकरी वे अने तीर्थकर चार सीझे. प्रत्येक बुद्ध दश अने स्वयंवृद्ध चार सीझ बेल्ला वे बुध्धद्वारना भेद जाणवा.
६ लिंगद्वारे गृहस्यलिंगी चार, अन्यलिंगी दश कने स्वलिंगी एकसो आठ सीझे.
७ चारित्रद्वारे - परिहार विना ओव जाणवो. एटले जे भांगाम परिहार विशुद्धि पद न आये त्यांओ एटले सामान्ययी एकसो आठ सिझे. ते भांगा आ प्रमाणे:- सामायिक, मूक्ष्म संपराय अने यथा ख्यात चारित्रवाळा त्रीकसंयोगी भांगे तेमज सामायिक, छेदोपस्थापनीय, सूक्ष्म संपराय अने यथाख्यात ए चतु:संयोगी भांगे मळी कुल वे भांगे एकसो आठ एकसो आठ सीझ. १४