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सिद्धपंचाशिका. .. . विवेचन-११ उत्कर्पद्वार-सम्यक्त्वथी पडीने केटलाक उत्कपंथी अर्थ पुद्गल परावर्तन कालरुप अनंतकाल सुधी संसारमा भमीने, सम्यक्त्यादि रत्नत्रय पामीने सीझे. केटलाक अनुत्कर्पथी असंख्यात अने संख्यात काल सुधी भमीने अने केटलाफ सम्यक्त्वथी पड्या विना सीझे.
१२ अन्तरद्वार-जघन्यथी एक समयनुं अंतर अने उत्कृष्टथी ६मासनु अंतर.
१३अनुसमय-(निरन्तर) द्वार-जयन्यथी बे समय सुधी अने उत्कृष्टथी आठ समय मुधो निरन्तर सीझे. जहनिअर इक अडसय१४, अणेग एगाय थोव संखगुणा१५ चउ उड़ नंदणजले, वीसपहुत्तं अहोलोए ॥९॥ जहन-जघन्य एगा-एक उड्डू-ऊर्ध्व इमर-इतर (उत्कृष्ट)
थोव-थोडा नंदण-नंदनवन इक-एक
जले-जळमां अडसय-एकसाआठ । मखगुणा-मख्यातगुणा ।
" पहुतं-पृथक्त्व अणेग-अनक च उ-चार . अहालोए अधोलोकमां .अर्थ-गणनाद्वारे जघन्यथी एक अने उत्कृष्टथो एकमो आठ अल्पबहुत्वद्वारे अनेक थोडा अने एक संख्यातगुणा. उर्वलोके, नंदनवनमा अने जलमां चार तथा अधोलोके वीस पृथक्त्व. ॥९॥
विवंचन-१४ गणनाद्वारे जघन्यथी एक सीझे अने उत्कृष्टः थी एकसो आठ सीझे. ऋषभदेवना निर्वाण समये एकसो आठ एक समये सिद्ध थया. ... १५ अल्पबहुत्द्वार-एकसाथे वे त्रण आदि सिध्ध थोडा अने तेनाथी एक सिध्ध संख्यातगुणा विवक्षित समये एक एक मिद्धन पाहुल्यपणुं होवाथी एवी रीते क्षेत्रादिक पंदर द्वारने विष सत्पद प्ररूपणाद्वार कयु.
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