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संहरणा-संहरणथी । श्रीजा आरामां
मूल तथा भाषांतर. . (१३१) खित्ति तिलोगे १ काले, सिज्झंति अरेसु छसुवि संहरणा। अवसप्पिणि ओसप्पिणि,दुतिअरगे जम्मु तिदुसु सिवं२॥५॥ खित्ति-क्षेत्रद्वारे छसुवि-छएमां पण | दुति अरगे-बीजा अने तिलोगे-प्रणलीकमां संहरणा-संहरणथी . काले-कालबारे
जम्मु-जम्म | अषसप्पिणि-अवस-विदस त्रीजा अने सिझंति सोझे छे, मोक्षे जाय छे. पिणी
बोजामां अरेसु-आराओमां | ओसप्पिणी-उत्सर्पिणी सिवं-मोक्ष
अर्थ-क्षेत्रद्वारे त्रणे लोकमां, कालद्वारे विचारतां संहरणथकी छए आरामां अने जन्मथी अवपिणीना बे आराना जन्मेला त्रण आरामां अने उत्सर्पिणीना त्रण आराना जन्मेला बे आरामां मोक्षे जाय छे. ५.
विवेचन–प्रथम सत्पदद्वारने विषे क्षेत्रादि पंदर द्वारोमां अनंतरसिद्ध जीवो विचाराय छे.
१. क्षेत्रद्वार-क्षेत्र ते त्रण लोक ऊर्ध्व, अधो अने तिर्यक्. तेमां ऊर्ध्वलोके पंडकवनादिमां, अधोलोके अधोलौकिक गामोमां, अने. ती लोके मनुष्यक्षेत्रमा सिद्ध थाय छे. संहरणथी नदी, समुद्र अने: वर्षधर पर्वतो वगेरेमां सिद्ध थाय छे.
२. कालद्वार-काल ते उत्सपिणी अने अवसर्पिणी रुप. तेमां संहरणथी छए आरामां सीझे. कारणके महा विदेहमां हमेशा सुखमदुःखमा रुप एकन आरो सदावतं. अने त्यां हमेशां मोक्षगमन होवाथी त्यांथी संहरण कराया छतां तेओ भरतादिक क्षेत्रमा जे आरो वर्ततो होय तेमां सीनता होवाथी छए आरामां मोक्षगमन छे. अने जन्मथी तो चरमशरीरीनो जन्म अवसर्पिणा कालमा निक्षे त्रीजा अने चोथा आरामा धाय अने सिद्विगमन ते बे आरामां अने केटलाकने जंवृस्वामीनी जेम पांचमा आरामां पण थाय. माटे मोक्षगमन त्रण आरामां उत्सर्पिणीमां तो बीजा जीजा अने चोथा आरामा जन्म