SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाचा-१-२] अवचूरिका [२३ पृ०७ पं० १४-["इवं व्यापार्यम्"] इति सम्बन्धः ।] , " ७, १५-अहंदा-ऽऽदि० [आदि-पदात् सिद्धसाधु-सङ्घ-देवा-माऽन्तं साक्षित्वं बोध्यम्] , ७ , २०-निश्रीकृतम् = [यावत् स्वसम्बन्ध-निरासेन पर सम्बन्धा-ऽऽपादनं निभा। " 'चेइयमाऽऽहा-कम्मे [म्म-ई"]तिं जपंतं इत्थमग्गणा एसा होह:"ण आहा-कम्मं चेहय-करणं सुए मणियं ." ॥१॥ "किं कारणं ण होइ ?" "आहा-कम्मस्स लक्खणा-ऽ-मावा" । "किं तस्स लक्खणं खलु ?" "मण्णइ, इणमो निसामेहि".-॥२॥ "जीवमुदिस्स कयं कम्मं, सो विय जइवि 'साहम्मी . । सो वा इ तत्तिअ-भंगे अ-लिंगि सेसेसु भंगेसु . ॥३॥ साहम्मिओ ण सत्था तस्स कयं, तेण कप्पइ जईणं . । जं पुण पडिमाण कए, तस्स कहा का ? अ-जीवचा .॥४॥ संवट्ट-मेह-पुष्फा सत्थ-निमित्तं कया जइ जईणं..। ण हु लब्मा पडिसिद्धा, किं पुण पडिम-ऽहमाऽऽरद्धं १ ॥५॥ तित्थ-कर-णाम-गोत्तस्स खय-ऽट्ठा अवि अ दाणि सायव्वे । धम्मं कहेइ सत्था पूअं वा सेवइ तं तु ॥६॥ कहमुवजीवं अरहा, तं पूअं तो सवं तु णो होइ ?। .. भण्णइ, अ-मावओ सो कम्म-ऽट्ठा कारणस्साउ ॥७॥ खीण-कसाओ अरहा कय-किच्चो वि जीय अणुइति । पडिसेवंतो अ अओ अतो सर्व होइ तं मयं . ॥८॥ तो साहम्मा-ऽ-भावा, चेझ्यमाऽऽहा-कम्मं भवे कप्पं ।। जं पुण जइ-णिस्साए कीरइ, तं वज्जणिज्जं तु ." ॥९॥ इति बृहद्-भाष्ये, पत्र ८७ १ चैत्यमऽत्र मङ्गला-ऽऽवि-भेदाच्चतुर्षा । २ (१) प्रवचन-सार्मिकम् वेष-सार्मिकम् । (३) प्रवचन-साधर्मिकम् वेष-साधर्मिकं न (२) प्रवचन-साध० न वेष-साधर्मि० (४) प्रवचन सा. न वेष-सार्मिकं न कमेण-१ 'सु-विहित-मुनि-२ श्राद्ध-साध्वाऽऽदि- ३ सा० निवाऽऽदि-४ सा० पाखण्डी। १ अत्र सत्कारा-ऽदि-धिया चंत्यविधानं । २ व्यावृत्त्य (क्यावृत्त्य) धिया भक्ता-ऽदिविधानम् । ३ सार्वत्रिक-पूजा. ३ कर्मपारतन्त्र्यमनुभवन् * शरीरा-ऽवष्टम्म.
SR No.023117
Book TitleDravya Saptatika Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLavanyavijay Gani, Nirupamsagar
PublisherJain Shwetambar Sangh Pedhi
Publication Year1968
Total Pages432
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy