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________________ ज्ञात होता है कि 'यु' प्रत्यय सामान्य व्यवहार में नहीं था। कामयमानः अर्थमें वैदिक पदोंमें क्यच् प्रत्ययान्त नाम धातुसे ताच्छीलिक 'उ' प्रत्यय से 'यु' रूप बनता था। तद्वान् अर्थमें 'यु' प्रत्यय लौकिक संस्कृत में ही सीमित था। जैसे- कंयु, शंयु, शुभंयु आदि।२९ 'ऊर्णायु'३० का प्रयोग छान्दस था। यास्कके समयमें इस प्रत्यय के जहां तीन अर्थ थे वहां पाणिनिके समय में मात्र एक ही अर्थ (तद्वान्) रह गया। अतः भाषामें इस प्रकारका अर्थ संकोच निश्चय ही अत्यधिक समयका परिणाम है। यास्कने उपमार्थीय, प्रतिषेधार्थीय , विनिग्रहार्थीय, विचिकित्सार्थीय, परिग्रहार्थीय आदि शब्दों के लिए 'ईय' प्रत्यय का तथा एकपदिक, सांयोगिक, भाषिक, आदि शब्दोंके लिए 'इक' प्रत्ययका प्रयोग किया है, जो अष्टाध्यायीमें उपलब्ध नहीं होते। अष्टाध्यायी में इसका दूसरा ही रूप मिलता है। इस विकासमें भी समयका पर्याप्त अन्तर माना जा सकता है। निरुक्त में, 'तेभिष्ट्वा' की व्याख्या तैष्ट्वा से करते हैं।३१ पाणिनि ऐसी स्थिति में षत्व का विधान ही नहीं करते। आचार्य यास्कके कुछ बाद तक इस प्रकार की सन्धियां प्रचलित थी। गविष्ठिर, युधिष्ठिर आदि शब्दोंका प्रयोग उसी के उदाहरण हैं। पाणिनिके समय तक इसे अपवाद माना जाने लगा। युधिष्ठिर शब्द प्रयोग प्रथमतः अष्टाध्यायी एवं गणपाठमें ही प्राप्त होता है।३२ यास्कके समय की अनेक सन्धियां पाणिनिके समय अप्रचलित हो गयी। इससे भी स्पष्ट होता है कि यास्क पाणिनिसे प्राचीन हैं। पाणिनिके समयका निर्धारण हो जाय तो यास्कके समय निर्धारणमें आसानी हो सकती है। पाणिनिके समय निर्धारणमें भी मतैक्य नहीं है। उस सम्बन्धमें कुछ विचारोंको देखना अपेक्षित होगा। सत्यव्रत सामग्रमीके अनुसार-पाणिनिके 'वासुदेवार्जुनाभ्यां वुन्'३३ सूत्रमें वासुदेव तथा अर्जुनकी चर्चा है। अत: इससे पता चलता है कि पाणिनि वासुदेव कृष्ण तथा अर्जुनसे बादमें हैं। कल्हणने पाण्डवों के काल का उल्लेख इस प्रकार किया है 'शतेशु षट्सु सार्धेषु व्यधिकेषु च भूतले कलेगतेषु वर्षाणामभवन् कुरू पाण्डवाः।।३४ अर्थात् कलियुग के ६५३ वर्ष बीत जाने पर पाण्डव वर्तमान थे। अर्जुनके पौत्र जनमेजयको कलियुगके सातवीं शताब्दी उत्तरार्द्ध का माना जा सकता है। पाणिनिने जनमेजय पदकी सिद्धिके लिए 'एजे: खश्३५ सूत्रका प्रयोग किया है। अतः पाणिनि ७९ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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