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________________ धातु पाठोंका ज्ञान यास्कको अवश्य होना चाहिए था। साथ ही वे अपने निरुक्तमें पाणिनीय नियमों एवं प्रयोगोंका उल्लेख अवश्य करते, जैसा कि अन्य वैयाकरणोंके नियमों एवं प्रयोगोंका उल्लेख इन्होंने किया है। सम्पूर्ण निरुक्तमें कहीं भी पाणिनीय नियमों एवं प्रयोगोंका उल्लेख नहीं प्राप्त होता। अतः पाणिनि यास्कसे पीछे हुए। पाणिनिके समय तक बहुत सारे नये नये शब्द प्रयोगमें आ गये थे, तथा बहुतसे वैदिक शब्द केवल साहित्य मात्र की ही शोभा बढ़ा रहे थे। यास्कसे पाणिनिके बीच के समयमें प्रयुक्त शब्दोंका प्रदर्शन पाणिनीय व्याकरण में होता है। पुनः यास्कका पाणिनि पर प्रभाव देखा जा सकता है। 'यस्कादिभ्योगोत्रे'१८ सूत्रसे पाणिनि यास्क शब्द की सिद्धि करते हैं। नामानि आख्यातजानि'१९ सिद्धांतके अनुसार यास्क अतिपरोक्षवृत्तिके द्वारा भी निर्वचन प्रस्तुत करते हैं। पाणिनिने यास्कसे प्रभावित होकर ही इस प्रकारके शब्दोंकी सिद्धिके लिए उणादयो बहुलम् २० सूत्रका निर्माण किया जिससे (अतिपरोक्षवृत्ति) अव्युत्पन्न शब्दोंकी सिद्धि हो सकी। यास्कने अपने निरुक्तमें कुछ व्याकरण परक शब्दोंका प्रयोग किया है,२१ जो स्वतः व्याख्या योग्य है तथा अन्वर्थक एवं वर्णनार्थक हैं। पाणिनिने कुछ यादृच्छिक संज्ञा की कल्पना की है, टि, भ, घु आदि। यास्क इस प्रकारकी संज्ञाका प्रयोग नहीं करते हैं। इन्होंने उपधा, अभ्यास, गुण आदि शब्दोंका प्रयोग किया है। लेकिन इन शब्दोंको पारिभाषित नहीं किया। इससे पता चलता है कि उस समय तक ये सारे शब्द इतने व्याप्त हो गये होंगे कि इन शब्दोंको बिना परिभाषाके भी समझा जा सकता था। बादमें पाणिनिने इन शब्दोंको पारिभाषित किया है। पाणिनिका उद्देश्य वैज्ञानिक तथ्यपूर्ण व्याकरण बनाना.था, जिसमें स्वार्थीपलब्धि के लिए अनुकूल परिभाषा देना आवश्यक था। इन परिभाषाओं के बिना व्याकरणके सूत्रोंका स्पष्टीकरण संभव नहीं है। अत: इससे पाणिनिको यास्कसे प्राचीय नहीं माना जा सकता। पाणिनिसे पूर्व सम्प्रदाय वालोंने भी तो उन शब्दोंको पारिभाषित किया है। ऐसी बात नहीं कि उन शब्दोंकी परिभाषा पाणिनिसे ही आरंभ होती है। उन परिभाषाओंमें किंचित् स्वरूप भेद होते हैं लेकिन विषय भेद नहीं होते। इस विषयमें एक समाधान उपस्थापित किया जा सकता है। ये सारे शब्द यास्कके कालमें अधिक प्रचलित होनेके कारण परिभाषाकी अपेक्षा नहीं रखते होंगे। यास्कसे पाणिनिके अन्तरालमें इन सारे शब्दोंका प्रचलन कम गया होगा। फलतः पाणिनिको इन शब्दोंकी परिभाषा देनी पड़ी। अतः इससे सिद्ध होता है कि पाणिनिसे यास्क प्राचीन हैं। ७७ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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