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________________ होता है क्योंकि इस यज्ञमें बैठे हुए मनुष्य यज्ञ करते हैं या स्तुति करते हैं। द्वार शब्दके संबंधमें-गृह-द्वार इति कात्यक्य :८७ अर्थात् इसका अर्थ कात्यक्यके अनुसार घरके द्वारसे है। वनस्पतिके संबंधमें यूपनाम इति कात्थक्य :८८ अर्थात् यह वनस्पति यूप यज्ञस्तम्भ है। देवयोष्ट्रीके संबंधमें - शस्यं च समाचेति कात्यक्य:८९ अर्थात् ये दो देवता व्रीहि आदि अन्न और सम्बत्सर हैं। इन स्थलोंके अतिरिक्त इनका उल्लेख नहीं प्राप्त होता। यास्कके द्वारा इनके सिद्धान्तोंके उल्लेखसे स्पष्ट है कि ये यास्कके पूर्ववर्ती हैं। रचनाएं :- यास्क द्वारा उपस्थापित इनके विचारोंसे अनुमान लगाया जा सकता है कि ये निरुक्तकारके साथ-साथ देवताओं एवं यज्ञोंके स्वरूप प्रतिपादक थे। अतः इन विषयोंसे सम्बद्ध इनका ग्रन्थ रहा होगा। सम्प्रति इनके कोई ग्रन्थ उपलब्ध नहीं होते। निर्वचन सिद्धान्त :- इनके निर्वचन सिद्धान्त यज्ञपरक अर्थ पर आश्रित हैं। निरुक्तमें इनके जितने भी निर्वचन प्राप्त होते हैं सभी यज्ञ परक अर्थसे युक्त हैं। इनके निर्वचन जो निरुक्त में उपलब्ध हैं निर्वचन प्रक्रिया तथा भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे अपूर्ण हैं। (ठ) आचार्य स्थौलाष्ठीवि इनके नामको अगर तद्धितान्त माना जायतो इससे स्पष्ट होता है कि ये स्थूलाष्ठीके पुत्र थे। यास्कने इनका स्मरण अग्नि एवं वायुके निर्वचन प्रसंगमें कियाहै। अग्नि: अक्नोपनो भक्तीति स्थौलाष्ठीविः न !पयति न स्नेहयति अर्थात् अग्नि अस्नेहन है। न+क्नु-अग्नि। वायु- वायुर्वातेते वा स्याद्गतिकर्मणः एतेरिति स्थौलाष्टीवि: अनर्थकोवकार:९१ अर्थात् वायु शब्द गत्यर्थक वा या गत्यर्थक वी धातुसे निष्पन्न होता है। आयुही वायु है। वायुमें वकार का आगम निरर्थक है। इस शब्दमें आदि व्यंजनागम माना जाएगा। इनके समयके संबंधमें स्पष्ट रूपसे कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन यास्क द्वारा इनके सिद्धान्तोंके उपस्थापनसे स्पष्ट हैकि ये यास्कके पूर्ववर्ती हैं। रचनाएं :-यास्क ने निर्वचनके प्रसंगमें इनका स्मरण किया है। इससे लगता है कि इनका कोई निरुक्त शास्त्र या निर्वचन शास्त्र नामक ग्रन्थ होगा। सम्प्रति इनके कोईभी ग्रन्थ प्राप्त नहीं होते। निर्वचन सिद्धान्त :- निरुक्तमें प्राप्त इनके विवेचनसे स्पष्ट होता है कि निर्वचनके वर्णागम आदि सिद्धान्त इन्हें मान्य हैं। वायु शब्दके संबंधमें प्रयुक्त स्थौष्ठीविका मत यास्कको भी मान्य है। इनके अनुसार वायु शब्दमें व व्यंजनागम हैं। ६६ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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