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________________ होती है। फलतः निर्वचनके सिद्धान्तोंमें रूपात्मक आधार इनके द्वारा मान्य होगा। वीरित से वीरिटमें मूर्धन्यीकरणका सिद्धान्तभी स्पष्ट है अत: ये मूर्धन्यीकरणको भी मानते थे। (ञ) आचार्य क्रौष्टुकि: ___ आचार्य क्रौष्टुकिका उल्लेख निरुक्तके आठवें अध्यायमें हुआ है। द्रविणोदा के अर्थको स्पष्ट करते हुए यास्क कहते हैं-तत्को द्रविणोदा? इन्द्र इति क्रौष्टुकिः। अर्थात् यह द्रविणोदा कौन है? इस प्रश्नमें क्रौष्टुकिका मत है कि ये इन्द्र हैं-स बलधनयोर्दातृतमस्तस्य च सर्वाबलकृति:१ अर्थात् इन्द्र ही बल और धनका सर्वश्रेष्ठ दाता है तथा उस इन्द्रके ही सम्पूर्ण बलका कार्य यह है। निरुक्तके अतिरिक्त वृहद्देवतामें भी इनका उल्लेख हुआ है।८३ इनकै समयके संबंध में विशेष जानकारी तो प्राप्त नहीं होती फिर भी यास्कके द्वारा उल्लिखित होनेके चलते निश्चयही इन्हें यास्कसे पूर्ववर्ती माना जाएगा। रचनाएं :- यास्कने अपने निरुक्तमें इन्हें निरुक्तकारके रूपमें स्मरण किया है। अतः निर्वचन शास्त्र पर इनकी रचना अवश्य होगी। निवर्चन सिद्धान्त :- निरुक्तमें द्रविणोदाके संबंधमें इनका विचार देखनेको मिलता है इससे स्पष्ट होता है कि ये निर्वचनमें अर्थात्मक आधारको अधिक महत्व देते हैं। इसी निर्वचनसे स्पष्ट होता है कि ये इतिहासविद् भी हैं। इन्द्रके इतिहासकी जानकारीके बिना इस प्रकारका अर्थ करना संभव नहीं। देवताओंके संबंधमें विशिष्ट ज्ञान सम्पन्न होनेकी सूचना भी यहीं प्राप्तहो जाती है। निष्कर्षतः यह कहा जा सकता हैकि इनका निर्वचन सिद्धान्त अर्थात्मक एवं ऐतिहासिक आधारसे युक्त होगा। (ट) आचार्यकात्यक्य ____कात्थक्य शब्दसे स्पष्ट होता हैकि ये आचार्य कत्यकके पुत्र थे। निरुक्तमें निम्नलिखित स्थलों पर इनका उल्लेख हुआ है : इध्मके संबंध यज्ञैध्म इति कात्यक्य:८४ इसके संबंधमें दुर्गाचार्य अपनी दुर्गवृत्तिमें लिखते हैं कत्यकस्यपुत्रः कात्यक्यः आचार्यः एवं मन्यते यत् यःअयम् इध्म आधीयते प्रतिप्रणवमिधमो यज्ञे स एवायम् ५ अर्थात् कत्यकके पुत्र आचार्य कात्यक्यका कहना है कि यह यज्ञेष्म यज्ञकाष्ठ है। तनूनपात्के संबंधमें तनूनपादाज्यमिति कात्यक्य:५ अर्थात् तनूनपात् का अर्थ कात्यक्यके अनुसार आज्य होता है।नराशंसके निर्वचन में नराशंसो यज्ञ इति कात्थक्य:नरा अस्मिन्नासीना:शंसन्ति।८९ अर्थात् नराशंस यज्ञ ६५: व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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